मौन संवाद 

01-09-2024

मौन संवाद 

अनुजीत 'इकबाल’ (अंक: 260, सितम्बर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

तुम थे, सदा से, दृष्टि के क्षितिज में
अवचेतन के विस्तृत नील गगन में
तुम्हारे पदचिह्न रेखांकित होकर अचेतन से मिलते रहे 
पुनः पुनः अनवरत 
 
तुम, जो तथागत की तरह 
जीवन में सम्यक् सत्य के अर्थों में घटे 
मैं रचती रही शब्दहीन काव्य
जो हमारे पूर्वजन्मों की स्मृतियों की गूँज था 
 
तुम्हारी उपस्थिति
बुद्ध की प्रतिध्वनि-सी
समय के चक्र को थाम लेती
और तुम्हारे अदृश्य हाथ रचते 
स्वप्नों का आकाश 
जिसके अनगिनत रंध्रों से रिसता तुम्हारा प्रेम
बोधि वृक्ष की पत्तियों पर 
ओस कण बन जगमगाता
और तारों की लय में
एक मौन संवाद बहता
जहाँ कोई प्रश्न नहीं
न उत्तर की तलाश

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