महायोगी से महाप्रेमी
अनुजीत 'इकबाल’क्षमा करना कृष्ण
प्रेम प्रणय की दृश्यावली
मैं तुम्हारे रासमंडल में
कदाचित न देख पाऊँगी
मेरे मन मस्तिष्क में
अर्द्धजला शव हाथों में लिए
क्रंदन के उच्च
आरोह अवरोह में
तांडव करते हुए
शिव की प्रतिकृति उकेरित है
वो प्रेम ही क्या
जो विक्षिप्तता न ला दे
तुम्हारी बंसी की धुन को
सुनने से पहले सम्भवतः
मैं चयन करूँगी
प्रेमाश्रु बहाते हुए शिव के
डमरू का आतर्नाद
और विकराल विषधरों की फुफकार
मृत्यु या बिछोह पर
तुम्हीं करो
“बुद्धि” का प्राकट्य
मुझे उस “बोध” के साथ
रहने दो, जो हर मृत्यु
अपने साथ लाती है
शिव से सीखने दो मुझे
कैसे विरहाग्नि
महायोगी को रूपांतरित करती है
महाप्रेमी में
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