बुद्ध आ रहे हैं
अनुजीत 'इकबाल’
बुद्ध आ रहे हैं द्वार पर
भिक्षापात्र हाथ में लिए
उनकी पदचाप की ध्वनि में
समस्त सृष्टि का मौन
गुंजायमान है
शून्यता से भरे पात्र में
स्वयं को दान करना चाहती हूँ
पर, हे बुद्ध
मन लज्जाजनक दुविधा में
कंपायमान है
बनती हूँ कभी सुजाता
कभी प्रियंवदा और आम्रपाली
अनंत जन्मों से आत्मा
अनवरत यात्रा में
चलायमान है
शून्यालय के महासागर में
स्थान मिले
अंतस की एकाकी अलकनंदा
इस अभिलाषा में
गतिमान है
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अनकही
- अवधान
- उत्सव
- उसका होना
- कबीर के जन्मोत्सव पर
- कबीर से द्वितीय संवाद
- कबीर से संवाद
- गमन और ठहराव
- गुरु के नाम
- चैतन्य महाप्रभु और विष्णुप्रिया
- तुम
- दीर्घतपा
- पिता का पता
- पिता का वृहत हस्त
- प्रेम (अनुजीत ’इकबाल’)
- बाबा कबीर
- बुद्ध आ रहे हैं
- बुद्ध प्रेमी हैं
- बुद्ध से संवाद
- भाई के नाम
- मन- फ़क़ीर का कासा
- महायोगी से महाप्रेमी
- माँ सीता
- मायोसोटिस के फूल
- मैं पृथ्वी सी
- मैत्रेय के नाम
- मौन का संगीत
- मौन संवाद
- यात्रा
- यायावर प्रेमी
- वचन
- वियोगिनी का प्रेम
- शरद पूर्णिमा में रास
- शाक्य की तलाश
- शिव-तत्व
- शिवोहं
- श्वेत हंस
- स्मृतियाँ
- स्वयं को जानो
- हिमालय के सान्निध्य में
- होली (अनुजीत ’इकबाल’)
- यात्रा वृत्तांत
- सामाजिक आलेख
- पुस्तक समीक्षा
- लघुकथा
- दोहे
- विडियो
-
- ऑडियो
-