सपनों का मर जाना
आत्माराम यादव ‘पीव’
जब जब दिल का दर्द,
असीम हो जाता है
तब-तब मुर्दा शान्ति सा,
यह शरीर भर जाता है।
ग़ायब हो जाती है तड़प,
ठहर जाते हैं मनोभाव,
मर जाते हैं सपने,
हो जाता है श्मशान सा ठहराव।
रोज़ रोज़ घर से काम पर निकलना,
और लौट कर आना
कितना कष्टप्रद होता है,
दुनिया में सब कुछ सह जाना।
द्वेष हिंसा और वासना है
आदमी के स्वार्थ की कहानी
छल, कपट और बेईमानी है,
धर्म के विनाश की वाणी।
नींद के नहीं, मैं जागते
सपनों को देखता रहा हूँ
समय की हर करवटों में,
सौ-सौ बार मरा और जिया हूँ।
ख़ामोशी से शांत है शरीर,
जीवन का हर पल थम सा गया है
डूब रहा आत्मा का सूरज,
चेतन मन मौत में रम सा गया है।
‘पीव’ कितना ख़तरनाक होता है,
जीवन में सपनों का मर जाना
अपने जिस्म को मुर्दा बनाकर,
उस मुर्दा शान्ति से ख़ुद भर जाना।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अधूरी तमन्ना
- अरी आत्मा तू जाये कहाँ रे
- आँखें पगला गई हैं!
- आज का कवि
- एक टीस अंतरमन में
- एक टीस उठी है . . .
- कितना ओछा है आदमी
- कौआ, कब कान्हा के हाथों रोटी छीनेगा
- क्षितिज के पार
- जाने क्यों मुझे देवता बनाते हैं?
- नयनों से बात
- नर्मदा मैय्या तू होले होले बहना
- निजत्व की ओर
- मातृ ऋण
- मुझको हँसना आता नहीं है
- मुझे अपने में समेट लो
- मेरे ही कफ़न का साया छिपाया है
- मैं एक और जनम चाहता हूँ
- मैं गीत नया गाता हूँ
- ये कैसा इलाज था माँ
- वह जब ईश्वर से रूठ जाती है
- सपनों का मर जाना
- सबसे अनूठी माँ
- समय तू चलता चल
- सुख की चाह में
- हे वीणापाणि आज इतना तो कीजिये
- होशंगशाह क़िले की व्यथा
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- सांस्कृतिक आलेख
-
- गिरिजा संग होली खेलत बाघम्बरधारी
- ब्रज की होली में झलकती है लोक संस्कृति की छटा
- भारतीय संस्कृति में मंगल का प्रतीक चिह्न स्वस्तिक
- मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा और विसर्जन का तात्विक अन्वेषण
- राम से मिलते हैं सुग्रीव हुए भय और संदेहों से मुक्त
- रामचरित मानस में स्वास्थ्य की अवधारणा
- रावण ने किया कौशल्या हरण, पश्चात दशरथ कौशल्या विवाह
- शिव भस्म धारण से मिलता है कल्याण
- स्वेच्छाचारिणी मायावी सूर्पणखा की जीवन मीमांसा
- साहित्यिक आलेख
- आत्मकथा
- चिन्तन
- यात्रा वृत्तांत
- हास्य-व्यंग्य कविता
- ऐतिहासिक
- सामाजिक आलेख
- सांस्कृतिक कथा
- विडियो
-
- ऑडियो
-