निजत्व की ओर

15-02-2024

निजत्व की ओर

आत्‍माराम यादव ‘पीव’  (अंक: 247, फरवरी द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

एक
 
मेरा नगर
शाश्वत काल से अत्यन्त रमणीक और सुन्दर रहा है
और उसका महाशून्यकार आकाश
शाश्वत निर्मल असीम नीलिमा लिये रहा है। 
न जाने कहाँ से
मँडराते घने काले बादलों ने
मेरे नगर के सौन्दर्य को निगल लिया है। 
मैं दूसरे नगर में गया हूँ
तब मेरे नगर में ये बादल शुभ्र रहे थे
पर इस नए नगर में
दूर तक बादलों का कोई पता नहीं है? 
और यहाँ के निवासियों को इसकी कोई ख़बर नहीं है
वे नहीं जानते बादलों ओर तूफ़ानों को
क्योंकि इनकी प्रकृति से वे अनभिज्ञ हैं
पर मेरे नगर की सुंदरता खो गई
मानो चंद्रमा में लगे धब्बे की तरह हो गई
उसके सौन्दर्य को वापस लाना होगा
बादलों को हटाने के लिए तूफ़ानों को बुलाना होगा। 
जो उन पर क़हर बनकर छा जायें
या तो बरसा कर या उड़ा कर ले जायें
तब कहीं मेरा नगर पुनः अपने सौन्दर्य को पा सकेगा॥
 
कई अज्ञात नगरों में होता हुआ
मैं इस ज्ञान विवेकयुक्त अद्भुत नगर में आया हूँ। 
मेरे नगर में
आरंभ में प्रवेश करते समय
मैं सम्राट बनकर आया था। 
जिसमें मिट्टी, जल, वायु
अग्रि और आकाश का सुन्दर मंदिर
विराट अस्तित्व में प्रतिक्रमण करने हेतु दिया था। 
जिसमें मेरी विरासत
पीवों के पीव से
रहस्यमय अन्तर्यात्रा करके
अंतरगृह में स्वाभाविक मिलने की थी। 
मगर अब मैं अपने ही नगर में
एक भिखारी बनकर रह गया हूँ। 
जो अपने स्वभाव से हट कर
काम क्रोध लोभ और मोह माया के
घने काले बादलों के बीच घिर गया हूँ। 
जन्म से लेकर जगत से परिचित न होने तक
मेरा हृदयाकाश
अखण्ड असीम विराट गहराई लिये
बेबूझ पारलौकिक रंगहीन नीलिमा के
तात्विक बादल हीन था। 
इसमें वास करते सम्राट को
दूर तक इन बादलों का कोई पता न था। 
वह नहीं जानता इन बादलों को और तूफ़ानों को
क्योंकि इनकी प्रकृति से वह अनभिज्ञ रहा। 
पर सम्राट की चेतना को
माया बाज़ार में भिखारी होने का आभास कराया गया
जहाँ उसने पाया कि उसके नगर की सुन्दरता खो गई
मानों चन्द्रमा में लगे धब्बे की तरह हो गई। 
उसके पूर्ववत सौन्दर्य को लाना होगा
बादलों को हटाने के लिये तूफ़ानों को बुलाना होगा
जाने इन पर क़हर बन कर छा जाये
या तो इन बादलों को बरसा कर
या इन्हें उड़ाकर ले जाये
तब कहीं मेरे नगर का वास्तविक सौन्दर्य स्वरूप
लौटकर आयेगा। 
जहाँ माया बाज़ार का भ्रम टूटेगा
भिखारी बन बैठा सम्राट
परमात्मा के आनंद को लूटेगा। 
  
दो
  
करोड़ों जीवाणुओं से युक्त
मेरा शरीर एक रहस्य नगर है
जिसमें विराट ऊर्जा छिपी हुई है। 
मेरे इस रहस्य नगर पर
मेरी असीम वासनाएँ
घने काले बादलों की तरह छा गई हैं। 
मेरे शरीर का हृदयाकाश
जन्म के समय शाश्वत निर्मल और धवल रहा है
और मेरी वासनायें उम्र के साथ-साथ 
अनन्त और विशाल होती गई हैं। 
जो हृदय और मस्तिष्क के साथ
निर्मल रही हैं
इन वासनाओं का ज़हर
सारे नगर/शरीर में फैल रहा है
और मेरा मन न जाने क्यों
मृत्यु के पास जाने हेतु
इन वासनाओं के मार्ग पर
पतन की ओर चल रहा है। 
मेरी वासनायें पीव
मेरी कामनाओं का सम्प्रेषण है
जो मुझे स्वजनों से विरासत में मिली है। 
इनमें सभी का स्वार्थ निहित है
पर मेरा हृदयाकाश प्रेम रहित है। 
मैं कामनाओं में
प्रेम को तलाश रहा हूँ
और वासनाओं की अति पर जी रहा हूँ। 
सुना है एक अति से दूसरी अति पर जो जाता है
वही शून्य का या निजत्व का
पूर्व शाश्वत स्वभाव पाता है। 

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