पंडित होशियार चंद बेढंगा
आत्माराम यादव ‘पीव’
नर्मदापुरम बाबू, बाबाओं और पण्डितों का नगर है। पुण्यनगरी में चहुँ ओर दानी धर्मात्माओं का ताँता लगा होने से यहाँँ दान-पुण्य के विपुल भण्डार पहाड़ों की शक्ल में मौजूद हैं। लेकिन कुछ लकीर के फ़क़ीर पंडित हैं जो अपने बापदादों की याद में इन दान पुण्य के पहाड़ों को उनके द्वारा खड़ा किया मानते हैं। घाट पर हज़ारों श्रद्धालु तीज त्योहार पर स्नान, दान पुण्य करने आते हैं पर वे यहाँँ के स्थानीय पंडितों से सत्यनारायन की कथा करवा कर, अपने बाप दादों के लिए पुण्य सकेलने की चाह में ग़ैर पंडितों की टोली का शिकार होकर. पावन नर्मदा तट तीर्थ पर मिलने वाले पुण्य से वंचित हो ख़ुद के लिए अनजाने में नरक का मार्ग चुनते हैं। चूँकि यहाँँ के जन्मजात पंडित तो पंडित हैं, उन्हें सभी पंडित मानते ही नहीं जानते हैं इसलिए उनका महत्त्व है। परन्तु मैं उन ग़ैर पंडितों की बात कर रहा हूँ जो जन्म से नाई, धोबी या अन्य के घर पैदा हुए पर कर्म से पंडित का काम कर, पंडित जी बनकर कथा आदि करके पूज रहे हैं और दूसरे वे जो पंडित के घर पैदा होकर भी धर्म-कर्म के अपने पैतृक कर्मों से बहुत दूर हैं। इसी प्रकार के एक पंडित होशियार चंद बेढंगा के विषय में अनेक चर्चे हैं जिन्हें बखान कर पाना मेरी तुच्छ बुद्धि के लिए सम्भव नहीं, फिर भी एक प्रसंग सुना है बताने की गुस्ताख़ी कर रहा हूँ।
पोंगा पंडित जी का भरा-पूरा परिवार है जिसमें उनके अन्य भाई वेद, पुराण, उपनिषदों और ज्योतिष के परम ज्ञानी हैं तथा रत्नों के मर्मज्ञ हैं। इनमें होशियार चंद मनमौजी जन्म से कामचोर और महाआलसी हैं, वह बेकार हैं पर कोई भी बात हो, इस बेढंगेपन से कहते हैं जो लोगों को चुभती है पर अच्छी लगती है। लापरवाही में उन जैसा कोई नहीं। बचपन से स्कूल का मुँह नहीं देखा इसलिए पढ़े-लिखे तो है नहीं परन्तु ज्ञानी भाइयों के छोटे अनुज होने से सभी उन्हें भी ज्ञानी समझते हैं! आख़िर क्यों न समझें? भाइयों के कारण लोग इन्हें मुफ़्त का सम्मान देकर पैर जो पड़ते हैं? भाइयों की सोहबत में रहते कई मंत्र और पूजा-पाठ की विधियाँ उन्हें ऐसे कंठस्थ हैं मानों वे वेद पुराणों के आचार्य हों, पर वे इनका अर्थ समझ पाते हैं इसकी कोई गारंटी नहीं लेता फिर भी कोई अपनी शंका का निदान न कर उन्हें मर्मज्ञ ही मानते हैं। बस यही ख़ूबी उन्हें होशियार बनाती है। संयोग से घर में वे होशियार चंद के नाम से विख्यात हो गए पर घरवाले उन्हें मतकमाऊ होने का ताना देकर बेढंगा पंडित कहकर रोज़ाना चिढ़ाते हैं और चार पैसा कमाकर लाने का ताना देते हैं, जिससे वे परिवार से कुढ़ा करते हैं। शादी के बाद बेढंगा जी अपनी पत्नी को छोड़, किसी काम के नहीं, घर से नहीं निकलते और दिन भर मक्खी मारा करते हैं। और कोई काम करने का कहने पर जी चुराकर काम टालकर अपनी योग्यता का लोहा मनवा लेते हैं। किन्तु इससे घर के सदस्य और उनकी पत्नी उनसे नाराज़ थी।
महाआलसी पर बकवास में महाचतुर पंडित होशियार चंद बेढंगा से रोज़ सुबह से देर रात सोने तक कुछेक लोग आ टपकते हैं तब पूरा दिन कोरी बकवास में समय निकालकर, उनसे तम्बाकू खाकर, इधर-उधर पीक मारकर दीवार और सड़कों को पीकदान बना रखा है। एक दिन पंडिताईन ने उनसे कहा, मेरा गुज़ारा कैसे करोगे, बाहर जाओ, कुछ करो, नहीं तो अच्छा होगा डूब मरो। पण्डित जी भी हाज़िर जवाबी, फ़ौरन बोले—पानी लाओ डूब मरूँगा, किन्तु मुझे घर से बाहर मत भेजो। पंडिताईन ग़ुस्से से बोली, फ़ौरन निकलो, यहाँ पानी नहीं लाऊँगी, अगर मेरे सामने सही में डूब मरे तो मैं विधवा हो जाऊँगी और उन्होंने झट पण्डित जी को घर से बाहर का रास्ता दिखाकर तुरंत दरवाज़ा बंद कर लिया। पंडिताइन की बात सुनकर होशियार चंद जी पहली बार घर से निकले कि कुछ आवारा कुत्तों ने उन्हें देखा और घर से न निकलने पर पहचान न होने पर अनजान व्यक्ति समझ उन पर भौंकने लगे। पण्डित जी कुत्तों को देख सरपट भागे। कुत्तों से तो बच गए किन्तु उन्हें भागते हुए सिपाही ने देख लिया। फ़ौरन सिपाही ने अनुमान लगाया और समझे मामला गड़बड़ है। पण्डित कहीं चोरी करके तो नहीं भाग रहा है। बस पुलिसवाला पण्डित जी के पीछे डण्डा लेकर दौड़ पड़ा और पण्डित जी पीपल के पत्तों की तरह थर-थर काँपते-भागते एक बँगले में घुस गए जो शहर के कप्तान साहब का था। जो संयोग से अपने बँगले के दालन में एक चादर ओढ़कर किसी अनसुलझे पेचीदा मामले को हल किए जाने की युक्ति सोचते हुए गहरी नींद में जा चुके थे और एक डरावना सपना देख अपना आपा खो कर गाली-गलौच कर रहे थे।
कप्तान साहब सपने में किसी शैतान के चंगुल में थे और उनके प्राण शैतान की मुट्ठी में, वे प्राण बचाने के लिए घिघिया रहे थे तो कभी ज़ोरों से चीख रहे थे। इतने में पुलिसवाले और कुत्ते से अपने प्राण बचाने निकला पंडित होशियार चंद झट से ख़ुद के प्राण बचाने के लिए कप्तान साहब से लिपट गए। कप्तान साहब ने ज्यों ही आँखें खोलीं, त्यों ही पंडित को अपने से लिपटा पाया। तब सपने वाला वह महाभयंकर शैतान नहीं दिखा? कप्तान साहब घबरा कर पंडित से बोले, “तुम कौन? जिसने मेरे प्राणों को शैतान से बचाया। मैं प्रसन्न हूँ और तुम्हारा कृतज्ञ हूँ जो तुमने कृपा की। अगर तुम मौक़े पर नहीं आते निश्चित ही वह शैतान मेरे प्राण ले लेता।” इस प्रकार कप्तान साहब ने सारा क़िस्सा होशियार चंद को सुनाया। कप्तान की बातें सुनकर पंडित जी की आँखों में चमक आ गई, चलो अब उन पर आया ख़तरा टल गया। तुरंत पंडित बेढंगा जी ने अपना रंग बदला और कप्तान साहब से कहा, आज शनि के योग से राहू-केतू की तिकड़ी से कप्तान साहब के प्राणों को ख़तरा था जिसे वे अपने घर के दिव्य साधना कक्ष में बैठे ही अपनी दिव्य दृष्टि द्वारा पूर्व ही भाँप गए और कप्तान साहब के दारुण दुख का नाश करने के लिए हर तरह का ख़तरा मोल लेते हुए आए और उनके प्राण बचाकर अपने जीवन को दाँव पर लगा लिया।
पंडित होशियार चंद ने बड़ी चालाकी से हाथ आए इस मौक़े को गँवाना उचित न समझ तुरंत ही कप्तान से कहा, “आपके प्राणों के संकट को देख मैं घर से निकला ही था कि पत्नी से खटपट हो गई। शनि की घड़ियों ने रोकना चाहा कि कोई आपकी मदद न करूँ। पत्नी की बिछाई गई बाधा को जैसे-तैसे पार कर घर से निकल सड़क पर आपके घर की ओर दौड़ लगाई कि मुझे भागता देख कुत्तों ने रोका। पर मैंने भागना बंद नहीं किया कि मुझे एक मूर्ख पुलिसवाले ने रोका, किन्तु में बिना समय गँवाए आपको बचाना चाहता था। और कुत्तों और पुलिसवाले कि परवाह किए बिना भागा। अगर रुक जाता तो शनि के भेजे शैतान से आप कैसे बचते? आपके पास आया तो आपको संकट में देखा, मानों मौत आप पर सवार थी। बस मैं मौत के सामने आपको बचाने के लिए झगड़ा करने को तैयार था। किसी कायर की तरह चुप खड़ा रहने की अपेक्षा मैंने शैतान को ललकारा। वह भाग गया, मरा नहीं है, जीवित है, हो सकता है दुबारा आए और आप पर हमला करे। इसलिए मेरा आपके यहाँ रहना आवश्यक है। कप्तान साहब ने होशियार को गले लगा कर सदा के लिए पुलिस महकमे का ज्योतिषी बना दिया और कहा आपने मुझे बचाया, मेरा जीवन बचाया, आपको जो भी, जितना धन चाहिए मैं दूँगा। तुरंत शहर भर के अपराधियों से हफ़्ता वसूली का पुण्य, होशियार चंद बेढंगा पंडित को अर्पित होने लगा। जिस पुलिसवाले ने उन्हें रोकने का प्रयास किया वह सेवा से बाहर कर दिया गया तथा कुत्ते के मुँह पर अलीगढ़ के ताले जड़ दिये गए ताकि यह कुत्ता दुबारा होशियार चंद पर नहीं भौंके। इस तरह पंडित होशियार चंद बेढंगा को उन्हीं जैसा कप्तान मिल गया ओर दोनों को रोज़गार बिना रुकावट के चल पड़ा।
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