आज का कवि
आत्माराम यादव ‘पीव’
जागरण के गीत गा रहा है आज कवि
जन जन की व्यथायें सुना रहा है आज कवि
वेदनायें सुनाकर सबको रुला रहा है आज कवि
मरी हुई चेतनाओं को जिला रहा है आज कवि
इतिहास कविताओं का बना रहा है आज कवि।
कवि के गान को सुनकर धरा भी बैचेन हो जाए
कवि के गीत सुनकर क्षितिज भी ठहाका लगाए
कवि के गान में बसे है गीता और रामायण
कवि के गान ही है धर्मशास्त्र ओर पर्यावरण
कवि के गान में है पक्षियों का कलरव और कोलाहल।
अकिंचन नारी के शृंगार गीत गा रहा है आज कवि
नेताओं की चरण वंदना से लजा रहा है आज कवि
साभार की कवितायें सुना कुछेक बदनाम हुआ आज कवि
‘पीव’ ऐसे वैसे सभी कवियों को नमन करता है आज ये कवि।
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