राम भरोसे

जयचन्द प्रजापति ‘जय’ (अंक: 247, फरवरी द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

“सुना हूँ गाँव में चोर आए रहे और बहुत हल्ला हुआ रहा भाई सरजू, कोई बात है क्या?” लखन ने सरजू से पूछा।

“हम भी सुने हैं कि सुमेर की बकरी चोर उठा ले गए,” सरजू ने कहा। 

“इ नेता लोग कहे रहे कि पूरी सुरक्षा देंगे पर बड़ा ढोल के अंदर पोल लग रहा है। सब गड़बड़ दिख रहा है। इ बकरी लोग जब सुरक्षित नहीं है। हम का घंटा बजा के सुरक्षित हैं?” लखन कहा। 

“दो दिन पहले दो भैंस रंजन के चोर ले गए। इ पुलिसवाले भी कुछ नहीं किए। हाथ पर हाथ रखे रहे। पान खा के मस्त हैं,” सरजू ने गंभीर होकर कहा।

“रामलाल के लड़कवा का आता पता कुछ नहीं चला,” लखन ने ज़ोर लगाकर कहा। 

“नेता जी से प्रधानजी बात किए थे बोले कि सरकार का कोई भरोसा नहीं है। चुनाव सर पर है। आचार संहिता लगा है। हट जाने दो। कुछ उपाय करते हैं तब तक राम भरोसे रहो,” सरजू ने कहा। 

इतना सुनते ही लखन का दिमाग़ चकरा गया। बोले कि अपनी सुरक्षा के लिए सरकार के भरोसे वोट दिए रहे कि राम भरोसे? सब घाल मेल बा, सब घाल मेल बा। 

दोनों बतियाते-बतियाते चाय की दुकान पर चाय पीने चल दिए राम भरोसे . . .

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