व्यंग्य का प्रहार 

01-04-2025

व्यंग्य का प्रहार 

जयचन्द प्रजापति ‘जय’ (अंक: 274, अप्रैल प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

लोगों पर तीखा प्रहार करते-करते हम व्यंग्य शास्त्री हो गये। ऐसा व्यंग्य कसते थे कि कई मानसिक रूप से घायल हो जाते थे। कई तो ईर्ष्या की आग में झुलस जाते थे। कई तो हमें देखकर रास्ते की दिशा बदल देते थे। कई तो हमें अपना मित्र समझने लगे। 

विरोधियों पर प्रहार करने के लिये हमें सबसे उपयुक्त प्राणी समझा गया। विरोधियों पर व्यंग्य प्रहार करने के लिये ऑफ़र दिया जाने लगा कि हमारा विरोधी बहुत कट्टर है। उस पर अगर व्यंग्य वाण छोड़ा जाये तो वह आंतरिक रूप से धराशायी हो सकता है। 

कुछ लोगों ने वरमाला की तरह माल्यार्पण कर मुझे अपने पक्ष में करने लगे। किसी ने स्वादिष्ट मिठाइयाँ भिजवाईं, किसी ने नए वस्त्र भिजवाये। किसी ने धनवर्षा की। किसी ने आभूषण भिजवाना पसंद किया। बड़ी ख़ातिरदारी की जाने लगी। मन मेरा तृप्त हो गया। 

व्यंग्य का रस मेरी जिह्वा से टपकने लगा। अंगारे निकलने को तैयार हैं। जैसे ही उसने अपने चिरविरोधी को मेरे समक्ष प्रस्तुत किया, ऐसा व्यंग्य का करारा प्रहार किया कि एक की बीच समाज में पगड़ी नीचे गिर गयी। किसी का पायजामा नीचे गिर गया। किसी के यहाँ घरेलू कलह हो गया। किसी को स्वयं से घृणा हो गयी। किसी ने अपना हथियार डाल दिए। किसी ने आत्महत्या तक कर डाली। कोई तो अपनी पत्नी की नज़रों से गिर गया। कई तो अपना मुँह समाज में दिखाने के क़ाबिल नहीं समझ  रहे हैं। 

विरोधियों की हार होते ही लोगों ने पैसों की ढेरी लगा दी। मेरा व्यंग्य का ब्रह्मास्त्र सफल रहा। एक कर्कश स्त्री पर व्यंग्य वाण चलाने की सिफ़ारिश की गयी। मैंने उस कर्कश स्त्री पर जैसे ही व्यंग्य प्रहार किया, उसके अंदर की शक्ति जागृत हो गयी। अब उसने रौद्र रूप धारण कर लिया। 

ज़ोरदार आवाज़ में गालियों की बौछार चालू हो गयी। कुछ ने आग में घी डालने का काम किया। मेरे कपड़े फाड़ डाले। मुक्के का ऐसा प्रहार किया किया कि मेरे अंदर का व्यंग्य शास्त्र कमज़ोर होने लगा। आत्मग्लानि का तीखा अनुभव हुआ। व्यंग्य शास्त्र की रूद्राक्ष माला तोड़ डाली। कठोर निर्णय लेते हुए व्यंग्य के सब तीर तरकश में सब रख लिए। शान्तचित्त हो गया। आजतक दुबारा व्यंग्य का तीर कभी नहीं छोड़ा। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें