भाभी का हृदय पिघला . . . एक कहानी

01-06-2024

भाभी का हृदय पिघला . . . एक कहानी

जयचन्द प्रजापति ‘जय’ (अंक: 254, जून प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

गर्मी का मौसम है। तेज़ धूप है। हवाएँ भी तेज़ चल रही हैं। लू का महीना, एकदम जान जा रही थी। बाहर बहुत मुश्किल से लोग निकल रहे थे। अचानक बस रुकी। बस से एक औरत झोला लिए उतरी। साड़ी में बेहद ख़ूबसूरत। सबकी निगाह उस महिला पर गई। कुछ लोग पहचान गए। ये तो मोहन की बहन है। काफ़ी खिल गई है शादी के बाद से। 

छोटे बच्चों के एक झुंड ने . . . बुआ आ गई, बुआ आ गई . . . चिल्लाते हुए सब ने बुआ जी को घेर लिया। किसी ने बुआ से नमस्ते की। किसी ने झोला थाम लिया, कोई झोला चेक कर रहा है कि इस बार बुआ क्या लाई हैं? कोई चिल्लाया कि बुआ जलेबी लाई हैं। मज़ा आ गया। बच्चे उछलने कूदने लगे। बुआ सब से हँस-हँस कर सबके गालों को दो अंगुलियों से हल्की चुटकी काट कर बच्चों की भीड़ देखकर ख़ुश हो गई थी। बुआ ने सभी बच्चों से घर पर चलने को कहा। 

कोई बुआ की अंगुली पकड़े रहा। कोई बुआ की साड़ी को पकड़े है, कोई झोला लिए, जहाँ बस रुकी थी थोड़ी दूर पर मायका था। बुआ के आने पर बच्चों में जो उत्साह हँसी होता है वैसा ख़ुशी बहुत ही कम मिल पाता है। आज बच्चे सब से ज़्यादा ख़ुश हैं कि बुआ घर में आ गई हैं। बुआ का नाम सँजो है। 

घर पर आते ही कुर्सी दी गई। बुआ बहुत ही प्यार से कुर्सी पर बैठ गई। पानी मीठे की व्यवस्था हो गई। बुआ ने पानी पिया तब तक चाय भी आ गई। साथ में नमकीन भी आ गया। बुआ सारे बच्चों को नमकीन दी। सब बच्चें नमकीन खाने में मस्त हो गए। इसी बीच बुआ की बड़की भाभी आ गई। साड़ी को सम्हालते हुए। सँजो ने बड़की भाभी के पैर छुए और आशीर्वाद लिया। 

“भाभी कैसी हो,” सँजो ने मुस्कुराते हुए पूछा

“ठीक हूँ। आने में दिक़्क़त तो नहीं हुई,” भाभी ने पूछा। 

सँजो भाभी एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा रही हैं। सँजो ने जलेबी की थैली भाभी को पकड़ा दी। भाभी ने सब बच्चों को जलेबी बाँट दी। बच्चे जलेबी खाने में मस्त हो गए। 

वैसे सँजो बुआ बड़ी पॉपुलर हैं; जब ससुराल से मायके आती हैं तो हल्ला सा मच जाता है कि सँजो बुआ आई हैं। झोले में ख़ूब जलेबी भर कर लाती हैं। बस से आती हैं। सब बच्चे चिल्लाते कि सँजो बुआ आ गई हैं। पूरे महल्ले में ख़ुशी का माहौल हो जाता है कि सँजो बुआ आ गई हैं। 

सँजो बुआ की लोकप्रियता का कारण है इनका हँसमुख स्वभाव। बड़ी चंचल हैं। घुँघराले बाल लहराते रहते हैं। चमकदार साड़ी में लिपटी रहती हैं। मासूम सा चेहरा। सादगी लपेटे रहती हैं। ऐसा व्यक्तित्व सँजो बुआ का था। 

जितने छोटे बच्चे हैं। बुआ के ऊपर लोटपोट हो जाते हैं। उनके गालों को छू लेते हैं। कभी गोद में हो लेते हैं। बुआ क‍इयों को गोद में लेकर बाल मनुहार करने लगती हैं। चिल्लर ज़रूर रखती हैं ताकि सबको पैसे मिल जाएँ। एक दर्जन बच्चों की संख्या थी। 

बुआ सावन की हरियाली की तरह होती हैं जब तक घर पर रहती हैं। नए-नए आइटम खाने के बनते हैं। नए-नये पकवान बनाए जाते हैं। खाने में मज़ा आ जाता है। सब चाहते हैं कि बुआ यहीं रहे। घर में ख़ुशी बनी रहे। एक माह तक रहती हैं। 

बुआ का जब ससुराल जाने का समय होता है तो सब लोग एक हफ़्ता और रुकने के लिए निवेदन करते हैं कि बुआ कुछ दिन और रह लीजिए। सम्भव नहीं होता है रुकना। बुआ को अपने घर की भी ज़िम्मेदारी है उसको भी देखना ताकना रहता है। 

बुआ गीत संगीत में भी काफ़ी माहिर हैं। कविता भी लिखती हैं। उनके गाने का ग़ज़ब का स्टाइल है। नृत्य की भी शौक़ीन हैं जब तक रहती हैं गाना बजाना गीत संगीत होता ही रहता हैं। जोक्स कॉमेडी की किंग हैं। अपने आप में एक सर्वगुण सम्पन्न हैं सँजो बुआ। 

बिना लाग-लपेट की ज़िन्दगी जीती हैं। ईमानदार सरल स्वभाव की हैं। किसी से झगड़ा कभी नहीं करती हैं। खुले विचारों की महिला हैं। फ़ैशन की दुनिया में सजना सँवरना काफ़ी अच्छा लगता है। पिज़्ज़ा, गोलगप्पा, चाउमीन देशी-विदेशी सभी खानें की चीज़ों का स्वाद लेती ही रहती हैं। ऐसी हैं सँजो बुआ। 

सँजो बुआ के माता पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं। सँजो बुआ के दो भाई हैं। दोनों भाई बाहर रहते हैं। दोनों की शादी हो गई है। सँजो बुआ सबसे छोटी हैं। सँजो बुआ सब लोग कहते हैं। दो भाइयों के बीच में बच्चों की संख्या ज़्यादा है। सब बच्चे हिल-मिल कर रहते हैं। सँजो अपनी बड़की भाभी के घर पर रहती हैं। 

बड़की भाभी मिलनसार हैं। छोटकी भाभी के मिज़ाज गरम हैं। जब भी बुआ आती हैं तो छोटकी भाभी सँजो से ठीक से बात नहीं करती हैं। खाना-दाना तक नहीं पूछती हैं। क़ायदे मुँह बात नहीं करती हैं। दोनों भाई अलग रहते हैं जब से माताजी की डेथ हो गई। पिताजी का देहांत बहुत पहले हो गया था। भाइयों ने मिलकर सँजो की शादी की थी। सँजो अच्छा पति पाकर काफ़ी ख़ुश नज़र आती हैं। 

छोटकी भाभी को जैसे पता चला कि सँजो आई हैं। वह घर के अंदर चली गईं। जब से सँजो की माता का देहांत हुआ है। सँजो की छोटकी भाभी सँजो से किसी भी प्रकार का लगाव ख़त्म कर दिया जबकि सँजो बहुत ही सरल स्वभाव की हैं। मिलनसार हैं। सँजो कई बार आई लेकिन छोटकी भाभी ने कभी बात नहीं की। ग़ुस्से में रहती हैं। ईर्ष्या जलन कूट-कूट कर सँजो के प्रति भरी है। सँजो मिलने जाती तो कटी-जली सुना देती थी छोटकी भाभी। सँजो सुन लेती लेकिन सँजो कुछ नहीं बोलती। 

कई बार जलेबी या कुछ भी खाने को लाती। अपनी छोटकी भाभी को ज़रूर देने जाती लेकिन तिलमिला जाती थी छोटकी भाभी। सँजो कई बार मनाने का प्रयास किया लेकिन भाभी भी टस से मस नहीं हुईं। 

दोपहर हो गया थी। छोटकी भाभी कमरे से बाहर नहीं निकली। ग़ुस्से में नहाई नहीं थी। छोटकी भाभी खुन्नस में रहती हैं जब तक सँजो रहती है। 

सँजो को छोटकी भाभी नहीं दिखी तो सारे बच्चों को लेकर जलेबी सहित मिलने पहुँच गई। 

“भाभी . . . भाभी . . . कहाँ हो?” सँजो ने पहुँचते ही बुलाना शुरू किया। 

भाभी बेड पर पड़ी रही और मुँह फुलाए रही। बुआ ने कई बार पुकारा लेकिन भाभी की नस नरम नहीं हुई। पुनः भाभी से कहा, “भाभी . . . जलेबी खा लीजिए।” 

“मुझे जलेबी नहीं खाना है . . .” छोटकी भाभी आवेश में आकर बोली। 

“ले लीजिए . . . गरम और नरम दोनों है . . .” सँजो ने कहा। 

सँजो ने छोटकी भाभी की बेटी को दी और कहा जाकर अपनी मम्मी को दे दो। उनकी बेटी जैसे जलेबी लेकर देने गई। छोटकी भाभी ने जलेबी को लेकर फेंक दी। 

“मैंने कहा ना . . . नहीं खाईँगी,” बेहद ग़ुस्से में छोटकी भाभी ने कहा। 

माहौल शांत हो गया। सब बच्चे बुआ का मुँह ताकने लगे लेकिन बुआ बहुत ही सहज रहीं। आवेश में नहीं आई। भाभी के इस तरह से व्यवहार को देखकर सोचने लगी कि आख़िर भाभी का व्यवहार मेरे प्रति कब बदलेगा। 

छोटकी भाभी मिज़ाजी है। अपनी ननद से बात नहीं करना चाहती है। पढ़ी लिखी है। गोरी है। अपनी सुन्दरता पर सम्मोहित रहती है लेकिन चिढ़ रहती है कि यह ननद यहाँ न आया करे। 

एक चीज़ सँजो को पता है कि अगर कोई गहना-गुरिया देता है तो बहुत ख़ुश हो जाती हैं। सँजो सोचती है कि छोटकी भाभी का इस तरह नाराज़ रहना उचित नहीं है। घर परिवार में रिश्तेदारी में किसी प्रकार का मनमुटाव ठीक नहीं है। मनमुटाव से खिन्नता आती है। मन उदास रहता है। 

अक्सर भाभी ननद में जमती नहीं है जहाँ भी भाभी-ननद होती है छत्तीस का आँकड़ा रहता ही है। एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या जलन रहती है। ननद अक्सर भाभी को निगरानी में लिए रहती है। भाभी भी ननद की निगरानी में करती रहती है। भाभी ने किससे क्या कहा है। कौनसी बात बोली है वह; सारी बातों को अपने मेमोरी में लिए रहती है। भैया या मम्मी को बताने का काम करती है यही कारण होता है कि भाभी ननद में नहीं जमती है। एक दूसरे के भरोसे में कमी रहती है। भाभी भी ननद की चुग़ली करनें में पीछे नहीं रहती है। 

सँजो चाहती हैं कि एक साड़ी छोटकी भाभी को भिजवा दें, हो सकता है कि नरम पड़ जायें। अपने लिए एक महँगी साड़ी ख़रीदी थी। इस साड़ी से बहुत लगाव हो गया था। गुलाबी कलर की साड़ी में कई डिज़ाइन भी बनाए गए थे। उस साड़ी को किसी को देना नहीं चाहती थी लेकिन आज वह साड़ी से अपनी छोटकी भाभी की नाराज़गी ख़त्म करना चाहती हैं ताकि उनकी भाभी का व्यवहार उनके प्रति सही हो जाए। 

सँजो ने इस साड़ी को छोटकी भाभी की लड़की को देकर भेजा। वह ख़ुद नहीं गई। वह अपनी भाभी के मिज़ाज को परखना चाहती है कि इस साड़ी के पाने के बाद भाभी के मिज़ाज में कितना परिवर्तन हुआ। छोटी भाभी की बेटी सान्या साड़ी लेकर जाती है और अपनी मम्मी की साड़ी दे देती है और कहती है, “मम्मी, ये देखो बुआ ने साड़ी दी है आप के लिए, साड़ी कितनी अच्छी है और बुआ भी कितनी अच्छी हैं।” 

छोटकी भाभी सँजो की दी साड़ी को हाथ में लेकर उलटने-पलटने लगी। सुंदर साड़ी देखकर भाभी के हृदय में एक सिहरन सी दौड़ गई। कितनी प्यारी साड़ी है! 

“मम्मी, बुआ की जलेबी क्यों नहीं खाई, बुआ बहुत अच्छी हैं। पैसा भी देती हैं, मम्मी तुम बुआ को खाना कभी नहीं खिलाती। बुआ मुझे बहुत चाहती हैं,” बेटी ने भावात्मक बात की। 

“अच्छा जा अब,” सान्या की मम्मी ने मन दबे कहा। 

सान्या भागती हुई बुआ के पास गई। आते ही बुआ से कहा, “बुआ, मम्मी साड़ी देख रही थी।” 

बुआ कुछ ख़्यालों में डूब गई। सान्या अन्य बच्चों के पास चली गई। भाभी नरम हो सकती हैं। बुआ ने मन बनाया है कि एक झुमका भाभी को देंगे ताकि भाभी को हमारे प्रति हेय दृष्टि से जो देखती हैं। वह न देखें। 

भाभी अकेले काफ़ी देर तक साड़ी को उलट-पलट कर देखती रही। बहुत सुंदर साड़ी थी। हर महिला इस तरह की साड़ी पसंद कर लेगी। छोटकी भाभी ने ग़ुस्से को कुछ कंट्रोल किया। साड़ी को वापस नहीं किया। साड़ी अपने अलमारी में रख दी। 

भाभी सोच रही हैं कि हमें सँजो के प्रति बदलाव लाना चाहिए आख़िर सँजो इसी घर की है। मैं नफ़रत की आग में जलती रही लेकिन सँजो केवल मुस्कुराती रही। कोई जवाब नहीं दिया। कितनी प्यारी ननद है जो हमारे बारे में इतना सोचती है। हमको भी सँजो के मान-सम्मान का ख़्याल रखना पड़ेगा। 

रात होने लगी। सब के घर में खाना पकने लगा। सँजो खाना बड़की भाभी के घर ही खाती हैं। कुत्ते आपस में लड़-झगड़ रहे थे। सारे बच्चे बुआ को चारों तरफ़ से घेरे थे और बुआ से हँसी-ठहाके हो रहे थे। रात के आठ बज गए थे। सब लोगों के खाना खाने का समय हो गया था। सब बच्चे भी अपनी-अपनी थाली में खाना लेकर खा रहे थे। बुआ भी बैठी खा रही थी। सान्या बुआ के लिए दूध लाकर दिया, “बुआ ये दूध, मम्मी ने दिया है . . . कहा कि ‘जाओ बुआ को दे आओ’।” सान्या ने दूध बुआ को देकर अपने घर भाग गई। 

भाभी ने आज तक कभी बुआ को कुछ नहीं खाने को दिया लेकिन आज इस तरह का दूध पहुँचाना हृदय परिवर्तन की निशानी है। बुआ ने बहुत चाव से दूध को पिया और भाभी के इस हृदय में हुए परिवर्तन को भूरि-भूरि प्रशंसा मन ही मन कर रही है। यही तो सँजो चाहती थी कि भाभी में दयालुता होनी चाहिए। आज इस तरह के परिवर्तन से अपनी जीत महसूस कर रही है सँजो। 

सुबह हो गई है। चिड़ियाँ अपने-अपने घोंसले से बाहर आकर ज़मीं पर पड़े दाने को चुग रही हैं। सुबह की सुरभि बह रही है जो बहुत ही ख़ूबसूरत दिख रही है। सभी लोग सबेरा हो जाने पर उठ गए हैं। कोई मंजन कर रहा है। कोई दातुन, कोई घर द्वार को बुहार रहा है। कोई जानवरों को पानी सानी दे रहा है। किसान खेतों में जाने की तैयारी कर रहा है। गाँव में चहल क़दमी हो गई है। रघु चाचा सुरती हथेली पर रख कर रगड़ रहे हैं। रमई काका बीड़ी की कश ले रहे हैं। सब लोग सुबह के घरेलू कार्यों में लग गए हैं। 

सँजो बड़की भाभी के घर पर सोती हैं। तड़के ही उठ जाती हैं। दातून मंजन करने के बाद बाहर की कुर्सी पर बैठ कर मोबाइल के फ़ेसबुक पर नज़र दौड़ा रही हैं। छोटकी भाभी के घर पर चाय बन गई थी। कभी चाय छोटकी भाभी ने नहीं पूछा था। आज छोटकी भाभी ने अपनी बेटी से चाय बुआ के लिए भेजवा दी। 

“बुआ, लो गर्म-गर्म चाय, मम्मी ने दी है,” सान्या ने चाय की कप बुआ को देते हुए कहा। 

“सान्या, मम्मी क्या बोली?” बुआ ने सान्या से पूछा। 

“मम्मी बोली कि बुआ गरमा-गरम चाय ज़्यादा पीती हैं।” 

इतना कह कर सान्या वहाँ से भागती हुई अपनी मम्मी के पास पहुँच गई। सान्या भी चाय लेकर पीने लगी। 

“मम्मी बुआ ने जो साड़ी दी है कितनी अच्छी है . . . साड़ी की तरह अपनी बुआ भी बहुत अच्छी हैं,” चाय पीते हुए सान्या ने मम्मी से कहा। सान्या कहकर खेलने चल दी। 

छोटकी भाभी घर से बार-बार सँजो को निहारती नज़र आ रही हैं। भाभी अपने में परिवर्तन करने को तैयार हैं। उनसे नफ़रत की आग को बुझा देना चाहती हैं। एक विशाल हृदय को रखना चाहती हैं। प्रेम की संवेदना से रिश्ते को बना कर रखना चाह रही हैं। अपने द्वारा किए कुछ व्यवहार को लेकर दुखी हैं। उसे महसूस हो रहा है कि उसने जो कुछ अपने ननद के साथ किया। वह सही नहीं किया। सँजो मुझे माफ़ करेगी कि नहीं। 

आज छोटकी भाभी को अपने किए पर ग्लानि है। बुआ के साथ कई सालों से किए जा रहे अपमान से आज उनके हृदय में उठा प्रेम सँजो द्वारा दी गई साड़ी से उनके प्रति उदारता का भाव जगा है अब वह कोई कार्य सँजो के साथ नहीं करना चाहती है। सँजो तो सरल स्वभाव की है। कभी भाभी से ऊँची आवाज़ में बात नहीं की। सदैव सँजो नरम मिज़ाज से ही पेश आती हैं। यही वजह है कि बच्चों में सबसे प्रिय बनी रहती हैं सँजो। बच्चे जीतना मम्मी पापा को नहीं याद करते हैं उससे ज़्यादा सँजो के स्नेह लाड़ प्यार से सबके दिलों में समाई सी हैं। 

आज गाँव में मेला लगा है। सब बच्चे ज़्यादा ख़ुश हैं। ख़ुशी, होने का मुख्य कारण—इस बार सब बच्चे बुआ के साथ मेला देखने जायेंगें। ख़ुशी से बच्चे उछल-कूद कर रहे हैं। आनन्द की सीमा नहीं है। तैयारी ज़ोरों से चल रही है। कोई नया कपड़ा ख़रीद रहा है। कोई बाज़ार से चप्पल ख़रीदने चला जा रहा है। कोई अपने बालों में मेंहदी लगा रहा है। कोई नाई की दुकान पर बाल कटवा रहा है। कोई हाथों में मेंहदी लगा रहा है। कोई धोबी के यहाँ कपड़ा प्रेस कराने पहुँच गया है। 

शाम चार बजे सब बच्चे तैयार हो गये। बुआ लाल साड़ी में बहुत सुंदर लग रही थी। लिपिस्टिक लगा रखी हैं। बालों को खुला रखी हैं। हाथ में बैग लिये सारे बच्चों के साथ मेला देखने चल दी। बच्चे उछलते कूदते जा रहे हैं। ख़ुशी उल्लास का वातावरण है। सब लोग मेले में पहुँच गये। कुछ बच्चे गुब्बारे की तरफ़ भागे, कुछ खिलौने देख रहे हैं। कुछ पानी-पूरी की तरफ़ लपके, बड़ा मज़ा आ रहा है, बुआ भी सब चीज़ देख रही हैं तथा बच्चों पर भी नज़र है कहीं कोई गुम न हो जाये। 

बुआ ने, जिस बच्चे ने जो कहा, सारी चीज़ ख़रीदवा दी। किसी को गुब्बारा ख़रीद दिया, किसी को खिलौने ख़रीद दिए, किसी ने जलेबी की ज़िद की . . . उसको ख़रीद दी। किसी ने चाउमीन खाया, किसी ने चाट, किसी ने फुलकी पानी। बुआ ने सबको कुछ न कुछ ख़रीदा, सब बच्चे झूम उठे। बच्चों को ख़ुश देखकर बुआ ख़ूब ख़ुश थी। सभी के लिए कपड़े भी ख़रीदे। 

बुआ को पता है कि छोटकी भाभी को सोने का झुमका बहुत पसन्द है लेकिन ग़रीबी के चलते आज तक भाभी झुमका नहीं ख़रीद सकी लेकिन लेने की लालसा मन में बनी है। बुआ सुनार की दुकान पर सारे बच्चों के साथ गई। 

बुआ दिल खोलकर खरचा कर रही हैं। सुनार की दुकान से दोनों भाभियों के लिये दो झुमके ख़रीद लिए। सुन्दर ढंग से डिज़ाइन की गई थी। सँजो नहीं चाहती हैं कि छोटकी भाभी मुँह फुलाए रहे। आज यह झुमका ख़राब रिश्ते को ख़त्म कर एक नये रिश्ते की शुरूआत करेगा। 

मेले से सब आ गये। बच्चों का शोर मचा है। सभी बच्चे अपने-अपने खिलौने से खेल रहे हैं। किसी का गुब्बारा फट गया। भयंकर आवाज़ के साथ फटा। बच्चों में शोर और बढ़ गया। कुछ जलेबी खा रहे हैं। मस्ती का माहौल। बुआ जब रहती हैं तो मज़ा ही रहता है। 

सँजो छोटकी भाभी के घर उस झुमके को देने चल दी। जैसे सँजो भाभी के घर पहुँची। सँजो को अचानक देखते ही भाभी सकपका गई। भाभी ने कुर्सी दी। सँजो कुर्सी पर घच्च से बैठ गई। सँजो के लिये मीठा भाभी ने लाकर दिया हल्की मुस्कान भाभी के चेहरे पर थिरक रही थी। मंद-मंद गति से सँजो मुस्कुराते हुए भाभी को झुमका दे दिया। 

“भाभी, ये सोने का झुमका आपके लिये ख़रीदा था। बहुत अच्छा लगेगा, जब आप पहनेंगीं,” सँजो ने झुमका थमाते हुए कहा। 

भाभी से झुमके को अपने लिये सुनकर ननद की इस भावना ने एकदम भाभी को शून्यलोक में पहुँचा दिया। जिस झुमके के लिये वह कई साल से सपना बना रखा था लेकिन हालात ने झुमके को दूर कर दिया था। ननद के लिये मेरे हृदय में जो अग्नि की ज्वाला धधक रही थी, उस अग्नि की ज्वाला को, ननद के मेरे प्रति इस स्नेह से समर्पित झुमके ने, बुझा दिया है। 

“ननदरानी जी माफ़ करना, आपका हृदय बहुत कोमल है। आपकी कोमलता ने मेरे इस ख़राब व्यवहार के घमंड को तोड़ दिया है,” छोटकी भाभी ने कहा। 

छोटकी भाभी के आँखों में अश्रु प्रवाह निकल पड़ा। भाभी के आँसू को सँजो अपनी उँगलियों से पोंछने लगी। 
दोनों की भावना आज एक जैसी हो गयी थी। भाभी ने अपनी हार स्वीकार कर चुकी थी। सँजो के मस्तक पर जीत का टीका लग गया था। दोनों एक दूसरे को निहारने लग गईं। 

भाभी का हृदय पूरी तरह से पिघल गया था। 

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