बसंत

जयचन्द प्रजापति ‘जय’ (अंक: 247, फरवरी द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

बसंत आया 
मौसम हुआ मदमस्त
बही पुरवाई
झूमा सारा तन मन
 
ख़ुशी का रंग बहा
नवल धरा हुई
खिल गया आसमां
 
नई नई आ गईं कोंपलें
कोयल कुहकी
चिड़िया चहकी 
छा गई लालिमा
 
रंग हुआ सुनहरा
मन भावन हुई
मन की तरंगें
आया रे बसंत

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