बड़ा ओहदा 

15-02-2024

बड़ा ओहदा 

जयचन्द प्रजापति ‘जय’ (अंक: 247, फरवरी द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

सूरजमल ग़रीबी में बड़ी मेहनत करके सरकारी आदमी बना था। आईएएस की बड़ी परीक्षा पास की थी। गाँव में जश्न मना था। गाँव में ख़ुशी की लहर थी। हर घर के लोग ख़ुश थे। ये अपना सूरज बहुत बड़ा आदमी हो गया है। 

हमारी समस्या का समाधान होने में टाइम नहीं लगेगा क्योंकि अपना सूरजमल है। अपना सूरज। सबके घर में रोशनी की दीपक सूरज जलायेगा। रौनक़ रहेगा। हर दिन दिवाली होगी। हमारे बच्चों को मदद मिलेगी। उस गाँव में तरह-तरह के सपने गढ़े जा रहे हैं। 

बड़ा ओहदा। बड़ा रुसूख़। आगे पीछे अधिकारियों की भीड़। मिल गयी लालबत्ती! चकाचौंध की दुनिया। बदल गया सूरजमल। अब वो सूरजमल नहीं रहा। सूरजमल ‘सर’ हो गया। एक वीआईपी सिक्योरिटी से घिरा। चीफ़ सेक्रेटरी की पोस्ट पर। चीफ़ मिनिस्टर का सबसे क़रीबी अधिकारी सूरजमल। रोज़ अख़बारों की सुर्ख़ियों में। 

बेहद ग़रीबी में पढ़ाई के दौरान मदद करने वाले सरजू को आशा थी कि सूरजमल उसकी मुसीबत में उसकी  सहायता करेगा। सरजू पहुँच गया सूरजमल की ऑफ़िस में। 

“यह आदमी कैसे अंदर आ गया?” 

“सर, आपके गाँव का सरजू। आपकी पढ़ाई के दौरान जिसने मदद की थी। वही सरजू।” 

आदेश जारी कर दिया गया कि गाँव के किसी व्यक्ति को यहाँ न मिलने दिया जाये। पैसे और ओहदे का जलवा। 

गाँव में हल्ला मच गया। सूरजमल ने सरजू के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया। गाँव के लोगों में भयंकर आक्रोश था। 

सूरजमल एक दिन अपने घर पर आया। गाँव के लोगों को आशा थी। गाँव के लोगों से ज़रूर मिलेगा। कुछ महिलाओं ने मिलने की कोशिश की। “यह अपना सूरज है”। जब सब को पता चल गया कि अपने ओहदे का घमंड हो गया है सूरजमल को; लोग उसके घर से वापस चले गए। निराशा हाथ लगी। लालबत्ती के आगे गाँव में सन्नाटा पसर गया। 

इस तरह महीने, दिन, साल गुज़र गए। कई बार सूरजमल गाँव आया। न तो सूरजमल गाँव वालों से मिलने की इच्छा ज़ाहिर की। न तो गाँव वाले मिलने गए। इस तरह अब वह दौर आ गया सूरजमल के रिटायर होने का। रिटायर होकर सूरजमल घर आ गये। सूरजमल के ज़माने के कई लोग अब इस दुनिया में नहीं रहे। 

सूरजमल की ज़िन्दगी गाँव में बीत रही है। कोई व्यक्ति नहीं आता मिलने को। बिल्कुल अकेली ज़िन्दगी। पुराने दिन याद आने लगे। ‘सरजू चचा कहाँ हैं? उनसे मिलना है। पढ़ाई के दौर में मेरी कई महीने की फ़ीस सरजू चचा ने दी थी।’ आज सूरजमल सरजू से मिलने सरजू के घर गया। 

“सरजू चचा मैं सूरजमल।”

“मैं नहीं जानता किसी सूरजमल को।”

“वही सूरजमल जिसकी आपने फ़ीस भरी थी।”

सरजू वहाँ से उठकर लाठी का सहारा लेकर चल दिया। पीछे से सूरजमल भी चल दिए। 

“अरे चचा भूल गए?” 

वह बूढ़ा आगे बढ़ता गया। सूरजमल अकेला पड़ गया। 

सूरजमल को एहसास हो गया कि जब हम किसी से नहीं मिले तो ये लोग क्यों मिलेंगे। सूरजमल के चेहरे पर निराशा के बादल छा गये। सिर पर हाथ रखकर बैठा रहा, सोचता रहा, पर गाँव का कोई व्यक्ति हाल समाचार लेने नहीं आया। 

‘ओहदे के आगे मैंने लोगों को नहीं पहचाना, आज लोग हमें नहीं पहचान रहे हैं। जिस मिट्टी में लोटपोट कर बड़े हुए हम। उस मिट्टी को हम भूल गये। वह मिट्टी हमको भूल गयी।’ 

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