प्यार मेरे द्वार आया
राघवेन्द्र पाण्डेय 'राघव'प्यार मेरे द्वार आया आज अपनापन लिए
कान में कुण्डल लगाए आँख में अंजन लिए
बावला बेताब मन लो नाचने-गाने चला
कुछ नहीं परवाह कितने राह में बंधन लिए
मैं अघा जाऊँ न पीकर जब तलक नज़र-ए–हया
सामने रहना खड़ी तुम साथ में सावन लिए
जब कभी जीवन सफ़र में हौसला छूटा, अभी तक
याद है हर बार आ जाना तेरा छाजन लिए
प्यार की मासूमियत पहचानते हैं बस वही जो
जी रहे हैं जिंदगी में प्यार का सा मन लिए
अब न कोई और ख़्वाहिश इश्क़ में बाकी रही
उम्र यूँ ही गुज़र जाये हाथ में दामन लिए