हर तरफ़ है छिड़ी समय को..
राघवेन्द्र पाण्डेय 'राघव'हर तरफ़ है छिड़ी
समय को भुनाने की ज़िरह
कल का सौदा टके का,
आज बेशक़ीमती है
कल था नवरात्र तो महँगी
थी देवियों की शकल
आज दीवाली में
लक्ष्मी-गणेश क़ीमती हैं
कल की मंदी में तो
सूरज भी बिका धेले में
बचे हैं जुगनूँ जो भी
आज शेष, क़ीमती हैं
जब तलक
मालिक-ए-गद्दी(गड्डी)
थे ताव से सोये
सर पे जब आ गया
चुनाव, देश क़ीमती है
वो अलग दौर था जब राम
की जय बोलते थे लोग
आज की लीला में
लंका-नरेश क़ीमती है