जग में नहीं है आदर
राघवेन्द्र पाण्डेय 'राघव'जग में नहीं है आदर घास-फूस की तरह
बस घूमते रहते हैं चापलूस की तरह
दिन में अमेरिका की तरह बम गिरा गये
रातों में चाँद पर चढ़ेंगे रूस की तरह
कल तक थे ख़फ़ा जिनपे नज़र तिरछी किए साब
उन पर ही आज बरस गये जूस की तरह
सबको खिला-खिला के मिठाई हुए तबाह
ख़ुद के लिए हैं बच गये लमचूस की तरह