जीवन और मेरी संदूकची
राघवेन्द्र पाण्डेय 'राघव'मूल लेखिका : विद्या पणिकर (A Suitcase too small)
अनुवादक : राघवेन्द्र पाण्डेय ‘राघव’
मेरी संदूकची
बड़े काम की है
रख लेती हूँ इसमें
ज़रूरत की सभी छोटी-मोटी चीज़ें
काली मिर्च और तुलसी युक्त
नारियल तेल का डिब्बा
बालों को सुलझाने-सँभालने के लिये
अड़हुल की सूखी-पिसी पत्तियाँ
धोऊँगी जिससे अपने सुनहरे केश
चंदन काठ के दो टुकड़े
आलमारी में रख दूँगी एक
भर जाएँगे कपड़े सुगंध से
पीसकर दूसरे को
लेप बनाऊँगी
माथे पर लगाऊँगी
रख लेती हूँ
बबूल की छाल को कूटकर
आँगन की तुरई को कपड़े में लपेटकर
साथ में अचार, चटनी पाउडर, पापड़
और कुछ चीज़ें चटर-पटर
जीवन
पर
केवल इतना ही नहीं है
अगले सोपान पर
बढ़ती हुई सोचती हूँ
काश, बड़ी होती यह संदूकची
तो हे परमपिता !
रख लेती मैं इसमें
अपने गाँव का मंदिर
गेंदा फूल का बगीचा
धूपबत्ती की खुशबू,
दीया-बाती
कमल के फूलों का तालाब
पंचायत की लाइब्रेरी
कटे-फटे पन्ने
उन किताबों के
जिन्हें पढ़ा मैंने
जिनसे
जीवन गढ़ा मैंने
और प्रत्येक वह लम्हा,
जो घर के किसी कोने में
बिताया था
हाथों में किताब थी
पढ़ने का बहाना था !