दु:ख का कारण
राघवेन्द्र पाण्डेय 'राघव'मेरे दुःख का कारण
क्या है, कौन है
किसको मारूँ, किसको बोलूँ !
उम्र के इसी पड़ाव पर
मैंने देखे कितने दुर्दिन
मन करता है जी भर रो लूँ !
क्या छिपाऊँ क्या दिखाऊँ
किसको दूँ किससे चुराऊँ
अपने-पराये का भेद सालता है जब
सोचता हूँ चलकर कहीं
जंगल में धन गठरी खोलूँ !
अंधा मैं सोचता रहा
सारा जग अंधा है
हो रहा जो वही
सही रीत-सही धंधा है
चोर मन सोचता है अँधियारे में जागूँगा
जागते हैं जब तक सभी
तब तक मैं सो लूँ