नज़र के सामने सोना पड़ा है
राघवेन्द्र पाण्डेय 'राघव'नज़र के सामने सोना पड़ा है
हमारी आँख पे पर्दा पड़ा है
उठाकर इसको सीने से लगा लूँ
कोई मासूम सा बच्चा पड़ा है
मेरा तू क़त्ल कर पर याद रखना
जो आया है उसे जाना पड़ा है
कमाता हूँ मगर बचता नहीं है
हमारी जेब पर डाका पड़ा है
मनाता मैं फिरूँ किस-किसको बोलो
जिसे देखो वही रूठा पड़ा है
तुम्हारी बादशाहत तोड़ देगा
हमारे हाथ में इक्का पड़ा है
लड़ा है आख़िरी दम तक कोई फिर
विखंडित रथ का ये पहिया पड़ा है
1 टिप्पणियाँ
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जिसे देखो वही रूठा पड़ा है , क्या बात कही , एकदम सटीक बहुत सुंदर रचना , इस खूबसूरत रचना के लिए ढेरों बधाई