क्रोध हूँ मैं
राघवेन्द्र पाण्डेय 'राघव' देखकर निज वैर बँधता जीव अपने आप मुझमें
क्रोध हूँ मैं
मैं बहुत बलवान हूँ
नियति और विधान हूँ
सृजन का प्रथमांश
पूरी सृष्टि का अवसान हूँ
मैं जला देता हृदय को, अग्नि का सा ताप मुझमें
क्रोध हूँ मैं
स्वजन को विगलित करूँगा
बुद्धिनाशक बाण हूँ
दनुज का सिरमौर
सात्विक वृंद अरि का प्राण हूँ
मित्र हूँ दुःस्वप्न का, है कोटिशः अभिशाप मुझमें
क्रोध हूँ मैं
रुद्र के त्रयनेत्र से
भस्मित किया कंदर्प को
यज्ञलौ बन किया मैंने
व्यथित तक्षक सर्प को
कलुष मन का गीत हूँ मैं, द्वेष का आलाप मुझमें
क्रोध हूँ मैं