हज़ारों वर्षों की कमाई

04-02-2019

हज़ारों वर्षों की कमाई

राघवेन्द्र पाण्डेय 'राघव'

हज़ारों वर्षों की कमाई
बेशर्मी-बेहयाई
लूट-पाट, चोरी-डकैती,
आवारागर्दी
अपनी-अपनी ड्यूटी
बजा रहे हैं बिल्ला-वर्दी
और
दुर्योधन-दुःशासन
होकर सवार उनके सीने पर
करते हैं अट्टहासें
फेंकते हैं गर्म-गर्म साँसें
जीती-जागती ज़िंदगी,
ज़िंदा लाश हो जाती है
हँसती-खिलखिलाती खुशी,
चुप-उदास हो जाती है

अतिथि का इस धरती पर
अब ऐसा सत्कार होता है
कि भूल से- भ्रम से
 राह भटकी हुई
किसी अजनबी महिला के
साथ बलात्कार होता है

हज़ारों वर्षों की कमाई
बेशर्मी ‌‌‌- बेहयाई....

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

किशोर साहित्य कविता
कविता-मुक्तक
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
कविता
अनूदित कविता
नज़्म
बाल साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में