हमने उनके वास्ते सब कुछ गँवाया
राघवेन्द्र पाण्डेय 'राघव'हमने उनके वास्ते
सब कुछ गँवाया
क्या इसी दिन के लिए
वे हमें अब
मारते-दुत्कारते हैं
हम सदा जीते रहे
जिनके लिए
तंगहाली में लिया था
कर्ज़ जिसका
ब्याज भी वे आज
गिन-गिन के लिए
ज्ञान ऊधौ
पास ही रखिए
न कोई प्रेम का है मोल
गोपिन के लिए
अन्न के दाने उठाते
हाथ बूढ़े सोच लो
अपने लिए या
नात-नातिन के लिए