हम जिए जाएँ लम्हें हर..
राघवेन्द्र पाण्डेय 'राघव'हम जिए जाएँ लम्हें हर शान के मुताबिक़
हर शाम गुज़र जाये अनुमान के मुताबिक़
कुछ ऐसा करिश्मा हो मिट जाएँ भेद सारे
अल्लाह के बंदे चलें भगवान के मुताबिक़
कुछ दिन पढ़ें गीता सभी हम साथ बैठकर
कुछ दिन कदम बढ़ाएँ क़ुर-आन के मुताबिक़
सुबहो भजन सुनाएँ, दिन भर ख़ुशी में झूमें
संझा को सुर लगाएँ, फिर अज़ान के मुताबिक़
दिन में मनाएँ होली रातों में हो दिवाली
पर इनके बीच जी लें रमज़ान के मुताबिक़
दूल्हे क़िसिम-क़िसिम के, हैं हाट में बिकाऊ
बोली लगाओ, पाओ ‘वर’ दान के मुताबिक़
राजा हुए किनारे, होने लगे महल के
अब तो हर-एक फ़ैसले दरबान के मुताबिक़