मैं नन्हा-मुन्हा बालक
राघवेन्द्र पाण्डेय 'राघव'सूरज उगता है दिन में ही, चंदा उगता रात में
पता नहीं क्यों दोनों कभी नहीं उगते हैं साथ में
मैं नन्हा-मुन्हा बालक मुझको दोनों ही भाते हैं
धरती से हैं दूर बहुत पर लेना चाहूँ हाथ में
एक बार जब शाम के समय सूर्य देवता डूब गये
मैंने माँ से पूछा क्या ये भगवन् हमसे रूठ गये
माँ बोली सूरज को उनकी माता सुला रही हैं
तू भी खा-पीकर सो जा अब मत उलझाओ बात में
उसी रात जब चंदा मामा अस्त हुए बदली में
मैं घर लौटा ढूँढ़-ढूँढ़ कर उनको गली-गली में
माँ कुछ कहती उससे पहले ही मैं सहसा बोल उठा
लगता है ये चांद गये हैं तारों की बारात में