नियम भाव सब भंग हुए
राघवेन्द्र पाण्डेय 'राघव'मन इतना क्यों अ-स्थिर है,
हम क्यों इतने तंग हुए !
पटक-पटक सर, खीझ खुदी पर
रोते रहे नवा के माथ
फूलों की सब गंध किन्तु, अविचल
उड़ गयी हवा के साथ
मुस्काती, उड़ती तितली के
पंख आज बेरंग हुए!
तार-तार हो छिटकी आशा
रहन-सहन की गति बदली
अलग हुये संबंध, बड़प्पन
छूटा, सबकी मति बदली
न्यायमूर्ति अब हँसते-हँसते,
अन्यायी के संग हुए!
शिशु के मस्तक पर फिरते थे
जननी के दुलराते हाथ
आँचल की वह ओट नहीं अब
बच्चों के घर हैं फुटपाथ
जप-तप, दान-ध्यान के शाही
नियम-भाव सब भंग हुए!