पहचान बन गई है ग़ज़ल मेरे नाम की 

01-09-2025

पहचान बन गई है ग़ज़ल मेरे नाम की 

निज़ाम-फतेहपुरी (अंक: 283, सितम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
वज़्न: 221    2121    1221    212
 
पहचान बन गई है ग़ज़ल मेरे नाम की 
बूढ़ा हूँ मेरी अब नहीं तस्वीर काम की 
 
आए न जो समझ में ग़ज़ल वो ग़ज़ल नहीं 
भाषा सरल हो शेर में अदबी पयाम की
 
वहदानियत के सच का ये जब से चढ़ा नशा 
चाहत नहीं है अब मुझे साक़ी के जाम की
 
मंज़िल है क़ब्र मेरी मैं उसके क़रीब हूँ 
तारीफ़ हो रही मेरे फिर भी कलाम की
 
मेहनत की खाएँगे वो जो ईमानदार हैं 
मक्कार झूठे खा रहे सारे हराम की
 
ख़ामोश हो गए हैं वो कुर्सी पे बैठ कर 
आवाज़ पहले जो थे उठाते अवाम की
 
बे-ख़ौफ़ हैं दरिंदे ये जिनकी पनाह में 
हाथों में उनके आ गई चाबी निज़ाम की

 —निज़ाम फतेहपुरी

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