किसे मैं सुनाऊँ ये ग़म का फ़साना
निज़ाम-फतेहपुरीग़ज़ल- 122 122 122 122
अरकान- फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
किसे मैं सुनाऊँ ये ग़म का फ़साना
सुनेगा तो रो देगा ज़ालिम ज़माना
सितम बिजलियों ने वो ढाए न पूछो
जला मेरे आगे मेरा आशियाना
बहुत कुछ बचाया बचाते-बचाते
मगर लुट गया फिर भी मेरा ठिकाना
न सोचा न समझा मोहब्बत को मेरी
जुदा हो गए वो बना कर बहाना
वफ़ा करके कुछ भी नहीं हमने पाया
न करते वफ़ा ग़म न पड़ता उठाना
जिधर से मैं गुज़रूँ यही लोग कहते
हटो आ रहा है वो देखो दिवाना
'निज़ाम' आख़री ये नसीहत है मेरी
हसीनों से दिल मत कभी तुम लगाना
– निज़ाम- फतेहपुरी
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