झूठी है ज़िंदगी यहाॅं मेहमान हम सभी

15-09-2025

झूठी है ज़िंदगी यहाॅं मेहमान हम सभी

निज़ाम-फतेहपुरी (अंक: 284, सितम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
221    2121    1221    212
  
झूठी है ज़िंदगी यहाॅं मेहमान हम सभी। 
असली है घर ॲंधेरे में सोचा है कुछ कभी॥
 
आ जाए मौत कब ये किसी को नहीं पता। 
मौक़ा है तौबा कर ले गुनाहों से तू अभी॥
 
नेकी का फल है नेक बुराई का फल बुरा। 
नेकी करोगे नेकी मिलेगी वहाँ जभी॥
 
आवाज़ हक़ की हमने हमेशा उठाई है। 
सच बोलता रहा हूँ बुरा बन गया तभी॥
 
मतलब ‘निज़ाम’ समझा जो दुनिया में आने का। 
जाने पे हँस रहा वही बाक़ी दुखी सभी॥
 

—निज़ाम फतेहपुरी

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

दोहे
ग़ज़ल
गीतिका
कविता-मुक्तक
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में