धोखा चमक दमक से उजाले का खा गए
निज़ाम-फतेहपुरीग़ज़ल- 221 2121 1221 212
अरकान-मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन
धोखा चमक दमक से उजाले का खा गए
देखा जो ग़ौर से तो अंधेरे में आ गए
दुनिया को मुंह दिखाने के क़ाबिल न रह सके
हमको हमारे शौक़ ही ये दिन दिखा गए
तहज़ीब के ये रंग भरे दौर क्या कहें
ख़ुद आज हमको अपनी नज़र से गिरा गए
नादान हम थे कितने की सब कुछ लुटा दिया
रुसवा हुए तो होश ठिकाने पे आ गए
छोटी सी एक भूल की माफ़ी न मिल सकी
जो की न थी ख़ता वो सजा हम भी पा गए
अपनी कमी कहें की ये क़िस्मत ख़राब है
सब लोग हमको अपना निशाना बना गए
शिकवा करे निज़ाम तो किससे करे यहाँ
जो हम सफ़र थे अपने वही ख़ुद मिटा गए
— निज़ाम-फतेहपुरी
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- ग़ज़ल
-
- अंगूर की ये बेटी कितनी है ग़म कि मारी
- ऐ मौत अभी तू वापस जा
- और हमको न कोई सताए
- किसी को जहाँ में किसी ने छला है
- किसे मैं सुनाऊँ ये ग़म का फ़साना
- कैसी निगाह-ए-इश्क़ में तासीर हो गई
- कोई भी शख़्स हर मैदान में क़ाबिल नहीं होता
- ख़ूबसूरत हैं तो होने दो नज़र में मेरे नइं
- खेलन को होली आज तेरे द्वार आया हूँ
- ग़ज़ल में नक़ल अच्छी आदत नहीं है
- ग़म मिटाने की दवा सुनते हैं मयख़ाने में है
- चमन में गया दरबदर मैंने देखा
- चल चल रे मुसाफ़िर चल है मौत यहाँ हर पल
- छन-छन के हुस्न उनका यूँ निकले नक़ाब से
- ज़िंदा हूँ जी रहा मेरी मंज़िल क़रीब है
- ज़ुल्म कितना वो ज़ालिम करेगा यहाँ
- जिनको समझा नहीं अपने क़ाबिल कभी
- दिल में मचलते हैं मेरे अरमान क्या करें
- दूर मुझसे न जा वरना मर जाऊँगा
- धोखा चमक दमक से उजाले का खा गए
- नाम लिक्खा छुरी, जिसने छूरी नहीं
- बात सच्ची कहो पर अधूरी नहीं
- बुढ़ापे में उसका नहीं कोई सानी
- मुझपे मौला करम की नज़र कीजिए
- मुझे रास आई न दुनिया तुम्हारी
- मेरी आरज़ू रही आरज़ू
- मैं शायर हूँ दिल का जलाया हुआ
- यक़ीं जिसको ख़ुदा पर है कभी दुख में नहीं रोता
- रग-रग के लहू से लिक्खी है
- लेकर निगाह-ए-नाज़ के ख़ंजर नए-नए
- वतन का खाकर जवाँ हुए हैं
- वो बचा रहा है गिरा के जो
- शायर बहुत हुए हैं जो अख़बार में नहीं
- शिकवा गिला मिटाने का त्योहार आ गया
- सारे जहाँ में कोई अपना नहीं हमारा
- हम तो समझते थे हम एक उल्लू हैं
- हर तरफ़ ये मौत का जो ख़ौफ़ है छाया यहाँ
- ज़िंदगी इक सफ़र है नहीं और कुछ
- गीतिका
- कविता-मुक्तक
- विडियो
-
- ऑडियो
-