ग़म मिटाने की  दवा  सुनते  हैं  मयख़ाने में है

15-02-2021

ग़म मिटाने की  दवा  सुनते  हैं  मयख़ाने में है

निज़ाम-फतेहपुरी (अंक: 175, फरवरी द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

ग़ज़ल-  2122  2122  2122  212
अरकान- फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
 
ग़म मिटाने की  दवा  सुनते  हैं  मयख़ाने में है 
आओ चल कर देख लें क्या चीज़ पैमाने में है
 
हुस्न की शम्मा का चक्कर सब लगाते हैं मगर
जान दे देने  कि  हिम्मत  सिर्फ़  परवाने  में है
 
मय कदे में कौन सुनता है किसी की बात को
हर कोई मशग़ूल  इक दूजे को समझाने में है
 
चार दिन जीना  मगर  जीना  जहाँ में शान से
सौ बरस ज़िल्लत से जीना अच्छा मर जाने में है
 
एक मयकश से जो पूछा किस लिए पीते हो तुम
हंस के बोला पी के देखो दम तो अज़माने में है
  
हम तो बरसों से खड़े बस इक झलक को ऐ सनम
आपको इतना तकल्लुफ़  बाम पर आने में है
 
एक दिन साक़ी की महफ़िल में गया जब ये निज़ाम
पी गया बोतल सभी क्या  मौज पी जाने में है

– निज़ाम-फतेहपुरी

 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ग़ज़ल
गीतिका
कविता-मुक्तक
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में