मेरी आरज़ू रही आरज़ू
निज़ाम-फतेहपुरीमेरी आरज़ू रही आरज़ू युँ ही उम्र सारी गुज़र गई
मैं कहाँ-कहाँ न गया दुआ मेरी बे-असर ही मगर गई
की तमाम कोशिशें उम्र भर न बदल सका मैं नसीब को
गया मैं जिधर मेरे साथ ही मेरी बेबसी भी उधर गई
चली गुलसिताँ में जो आँधियाँ तो कली-कली के नसीब थे
कोई गिर गई वहीं ख़ाक पर कोई मुस्कुरा के सँवर गई
वो नज़र जरा सी जो ख़म हुई मैंने समझा नज़र-ए-करम हुई
मुझे क्या पता ये अदा थी उनकी जो दिल के पार उतर गई
मेरे दर्द-ए-दिल की दवा नहीं मेरा ला-इलाज ये मर्ज़ है
मुझे देखकर मेरी मौत भी मेरे पास आने में डर गई
ये तो अपना अपना नसीब है कोई दूर कोई करीब है
न मैं दूर हूँ न करीब हूँ यूँ ही उम्र मेरी गुज़र गई
ये खुशी 'निज़ाम' कहाँ से कम कि हैं साथ अपने हज़ार ग़म
ये ही ज़िंदगी है ये सोचकर हँसी आके लब पे बिखर गई
– निज़ाम फतेहपुरी
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- ग़ज़ल
-
- अंगूर की ये बेटी कितनी है ग़म कि मारी
- ऐ मौत अभी तू वापस जा
- और हमको न कोई सताए
- किसी को जहाँ में किसी ने छला है
- किसे मैं सुनाऊँ ये ग़म का फ़साना
- कैसी निगाह-ए-इश्क़ में तासीर हो गई
- कोई भी शख़्स हर मैदान में क़ाबिल नहीं होता
- ख़ूबसूरत हैं तो होने दो नज़र में मेरे नइं
- खेलन को होली आज तेरे द्वार आया हूँ
- ग़ज़ल में नक़ल अच्छी आदत नहीं है
- ग़म मिटाने की दवा सुनते हैं मयख़ाने में है
- चमन में गया दरबदर मैंने देखा
- चल चल रे मुसाफ़िर चल है मौत यहाँ हर पल
- छन-छन के हुस्न उनका यूँ निकले नक़ाब से
- ज़िंदा हूँ जी रहा मेरी मंज़िल क़रीब है
- ज़ुल्म कितना वो ज़ालिम करेगा यहाँ
- जिनको समझा नहीं अपने क़ाबिल कभी
- दिल में मचलते हैं मेरे अरमान क्या करें
- दूर मुझसे न जा वरना मर जाऊँगा
- धोखा चमक दमक से उजाले का खा गए
- नाम लिक्खा छुरी, जिसने छूरी नहीं
- बात सच्ची कहो पर अधूरी नहीं
- बुढ़ापे में उसका नहीं कोई सानी
- मुझपे मौला करम की नज़र कीजिए
- मुझे रास आई न दुनिया तुम्हारी
- मेरी आरज़ू रही आरज़ू
- मैं शायर हूँ दिल का जलाया हुआ
- यक़ीं जिसको ख़ुदा पर है कभी दुख में नहीं रोता
- रग-रग के लहू से लिक्खी है
- लेकर निगाह-ए-नाज़ के ख़ंजर नए-नए
- वतन का खाकर जवाँ हुए हैं
- वो बचा रहा है गिरा के जो
- शायर बहुत हुए हैं जो अख़बार में नहीं
- शिकवा गिला मिटाने का त्योहार आ गया
- सारे जहाँ में कोई अपना नहीं हमारा
- हम तो समझते थे हम एक उल्लू हैं
- हर तरफ़ ये मौत का जो ख़ौफ़ है छाया यहाँ
- ज़िंदगी इक सफ़र है नहीं और कुछ
- गीतिका
- कविता-मुक्तक
- विडियो
-
- ऑडियो
-