चमन में गया दरबदर मैंने देखा
निज़ाम-फतेहपुरीचमन में गया दरबदर मैंने देखा
लब-ए-गुल पे ख़ून-ए-जिगर मैंने देखा
तुम्हें खुद से जब बेख़बर मैंने देखा
तभी दो घड़ी भर नज़र मैंने देखा
जुनूँ है निगाहों का धोखा है क्या है
तुम्हीं तुम खड़े हो जिधर मैंने देखा
बिखेरी जो तुमने ये ज़ुल्फें घनेरी
घटा छा गई हर डगर मैंने देखा
भुलाने का मतलब तो है याद करना
भुला कर तो शाम-ओ-सहर मैंने देखा
मिला शाह राहों के पीछे अंधेरा
कई रात सारा नगर मैंने देखा
जो थकते न थे मेरी तारीफ़ करते
न रोए मेरी मौत पर मैंने देखा
हक़ीक़त समझ ली है दुनिया की जिसने
वो ख़ामोश है इस क़दर मैंने देखा
था काँधा भी अपना जनाज़ा भी अपना
अजब अपनी रोशन क़बर मैंने देखा
सुकूँ क्यों है शहर-ए-खमोशा में यारो
बशर का तो नन्हा सा घर मैंने देखा
'निज़ाम' इस जहाँ में कहाँ चैन दिल को
परेशाँ यहाँ हर बशर मैंने देखा
– निज़ाम-फतेहपुरी
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