पहाड़ चढ़ने की शर्त

01-06-2022

पहाड़ चढ़ने की शर्त

डॉ. मनोज मोक्षेंद्र (अंक: 206, जून प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

देखो! 
आए हो
तो स्वागत् है! 
पर, मेरी शर्तों पर
मुझमें से गुज़रना होगा; 
तुम्हारी नज़र लगी झाड़ियों में
बस, कुछ परित्यक्त घोंसले ही रह गए हैं; 
पता नहीं कहाँ चले गए
इसके इन्द्रधनुषी
पाखी वाले
चहकते
नागरिक! 
 
मेरी शर्तों पर
तुम्हें छूना होगा
किसी देवदारु की बाँहें, 
नहीं टाँगना होगा उन पर
पोलीथीन का थैला, 
जब मैं अपने 
हीरक अतीत में 
खोया रहूँ, 
तभी इजाज़त है तुम्हें
मुझे कैमरे में
क़ैद करने की
 
अरे, हाँ! 
नहीं लूटनी होगी
मेरी वादियों में
किसी पहाड़न की अस्मत, 
देखो! 
जब शीतल हवा बहने लगे
तुम्हें नहीं छोड़ना होगा
टेक्नो-शहरों से लाया हुआ
कलुषित उच्छवास
 
मैं तुम्हारी शर्तों पर
नहीं बख़्शूँगा तुम्हें, 
ढह पड़ूँगा तुम्हारे ऊपर
तुम्हारे चेते बग़ैर
 
सो, बाज़ आ जाओ
मुझ पर अपनी मुहर लगाने से, 
मेरी शर्तों पर ही तुम 
बैठ सकोगे मेरी घाटियों में आइन्दा
किसी बहती धारा में पैर लटकाकर, 
या झुककर हाथ डालकर
 
हाँ! 
मेरी शर्तों पर ही
मिलेंगी ख़ुशियाँ तुम्हें
और दहकते प्रदेशों से आकर
मेरी वादियों का शीतल अमृत-वरदान, 
जब तक मेरे बिखरे कंकड़ों-पत्थरों को
देव-प्रतिमाओं की तरह पूजोगे नहीं
मैं देवस्थलियों में
नहीं टिकाने दूँगा
तुम्हारे पाँव
 
मैं रौंद-रौंद तुम्हें नहीं जाने दूँगा
शर्त-पाश से बाँधकर, 
तुम्हें विवश कर दूँगा 
अपनी शर्तों पर 
जीने के लिए। 

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