अजेय की अजेय कविताएँ सभी के लिए
डॉ. मनोज मोक्षेंद्रसमीक्षित पुस्तक: अंतरंग सतरंग
विधा: काव्य
रचनाकार: अजेय जुगरान
प्रकाशक: विश्व ज्ञान प्रकाशन, नई दिल्ली, ११००५९
पुस्तक की पृष्ठ संख्या: १५५
पुस्तक का मूल्य: ₹७४५/-
प्रकाशन-वर्ष: २०२१ (प्रथम संस्करण)
जब कविता आसमानी उड़ान से बाज़ आकर, ज़मीन पर चहलक़दमी करने लगे तो वह बेशक! ज़मीन से इस तरह जुड़ जाती है कि उसे आम जन-जीवन से हटकर कुछ और कहना-बतियाना बिल्कुल रास नहीं आता। यथार्थ, कोरी तथा अवास्तविक कल्पना को धता बताते हुए, वह समाज के सबसे निचले तबक़े में घुसकर उन अँधेरी गली-कूचों से गुज़रने लगती है जहाँ उसे उन फटेहाल लोगों तथा स्वजनों के बीच उठ-बैठकर उनकी ही भाषा में बकबक करना अच्छा लगने लगता है। इस समकाल में जबकि कविजन गुम्फित विचारों और भावों के सम्प्रेषण में अनौपचारिक रूप से अपनी ही दमित भावनाओं को कविता में व्यक्त कर रहे हों तो ऐसे समय में किसी कवि द्वारा सीधी-सपाट भाषा-शैली में अपने से इतर लोगों के बारे में बतियाना और आम जन-जीवन में झाँकने की ज़ुर्रत करना कुछ अज़ीब-सा तो लगता ही है; यक-ब-यक ध्यान को बरबस खींचने वाला भी लगता है।
यहाँ मैं कुछ ऐसी कविताओं के बारे में बातें करना चाहता हूँ। हाल ही में मेरे हाथ आया एक कविता-संग्रह ऐसा ही है, जिसे अजेय जुगरान नामक किसी नव-प्रवेशी कवि ने काव्य धारा को एक नए कलेवर में सजाया-सँवारा है और कविता को अँधेरी गलियों से निकालकर वहाँ खड़ा किया है जहाँ से मोहताज, ज़रूरतमंद लोग कभी अनमने-से तो कभी अतीत की तरफ़ झाँकते हुए खड़े नज़र आते हैं और अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए कुछ-न-कुछ करने की जद्दोज़हद में व्यस्त दिखाई देते हैं।
इस कविता-संग्रह का शीर्षक है ‘अंतरंग सतरंग’। जैसा कि शीर्षक से ही सहज-विदित है, कवि आम आदमी के साथ अंतरंग होने के लिए सारे हिकमत अपनाता है और उसके जीवन के अनेकानेक पक्षों को नानाविध रूपों में हमारे सामने प्रस्तुत करता है। यह भी उल्लेख्य है कि अपने इस सायास-प्रयास में वह कविता को बहला-फुसलाकर कथात्मक पोशाक पहनाने का सफल स्वांग खेलता है। जैसा कि संग्रह की पहली ही कविता ‘इक रूपए में मुट्ठी डमरू’ में वह अपने कवि-सुलभ अंदाज़ में किसी स्कूली बच्चे की गतिविधियों को पूरे कहानीपन के साथ पेश करता है और हमें अचंभित कर देता है कि क्या कविता का कोई ऐसा भी रंग-रूप हो सकता है। यहाँ, कवि का अंदाज़ तो ज़रा देखिए:
‘. . . फिर बचेंगे जो पैसे/ उनसे छुट्टी पर निकलते हुए/ . . . खोमचे वाले बूढ़े बाबा से . . . चटपटे चने, चूरन, गुड़िया के बाल या कड़ाका/ लूँगा . . .’
इस संग्रह में अजेय जुगरान ने अपनी कविताओं का वर्गीकरण ‘बचपन’, ‘परिवार’, ‘बिटिया’, ‘प्रेम’, ‘हाथी से चूहे तक’, ‘आवाहन’, ‘कुछ और रंग’ जैसे सर्गों में किया है। हमें कवि का कवि-सुलभ चातुर्य सहज समझ में आने लगता है कि वह कुछ ख़ास विषयों पर ही हमारा ध्यान केंद्रित करना चाहता है तथा हम इस बात से अवगत हो जाते हैं कि कवि को कुछ अजीब-सी असहजअभिव्यक्तियों से नहीं गुज़रना है। ‘बचपन’ सर्ग के अंतर्गत संकलित कविताएँ इतनी सीधी-सादी हैं कि ये बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक के पाठकों के लिए पठनीय हैं। यहाँ अपनी इंदू मौसी के बारे में कवि की स्वयं की आनुभविक स्मृतियाँ मन को छू जाती हैं; अवश्य ध्यान दें:
‘कभी अकेले, कभी दुकेले, कभी भाई-बहन तिकेले
हमेशा हंस-प्यार के बैठा वो लाती बग़िया से भुट्टे-केले।’
जुगरान अपने व्यतीत जीवन की वीथियों में घूमते-फिरते हुए अपनी स्मृतियों को बार-बार कुरेदते हैं और अपने संबंधियों के व्यक्तित्व और उनके कार्यकलापों को उकेरते हुए ही आत्म-तुष्ट होते हैं। उनके मानस-पटल पर कभी हरीराम का अक्स उभरता है तो कभी उनके ऊपर शैलू मामा की स्मृतियाँ आच्छादित हो जाती हैं। ‘पारिवारिक’ सर्ग में भी वे अपने स्वजनों के साथ रिश्तों को बार-बार रूपायित करते हैं। कवि का अपना बचपन भी इस पूरे संग्रह में झाँकता है। कवि के बालपन का आलाप हमें प्रायः अपने बचपन की स्मृतियों में धकेल देता है। ‘कालपत्र के कंचे’ कविता में अजेय का आत्मालाप कुछ ऐसा ही है:
‘मैंने बचपन में अक्सर/हर सुबह शैतानियों के पहले/और हर देर बाद शैतानियों के बाद/सबसे अच्छा बच्चा बनने की सोची बार-बार।’
कविता में कथाकार की तरह ‘हरिराम’ जैसे किसी व्यक्ति का सांगोपांग चरित्र-चित्रण करना अजेय जुगरान जैसे कवि के लिए आसान-सा लगता है; किन्तु, इस कार्य में उसका प्रयत्न-लाघव क़ाबिल-ए-तारीफ़ है। कविताई के अभाव को उसकी भावुकतापूर्ण अभिव्यक्ति पूरी करती है। एक उद्धरण द्रष्टव्य है:
‘भाभी जी ने . . .
. . . उससे बीड़ी-शराब न पीने की ताकीद की
जिस पर मुझे उसकी हल्की भूरी आँखों में
मजबूरी की नमी दिखी।’
कवि को अपनी माँ की स्मृतियाँ बार-बार कुरेदती हैं। अभौतिक हो चुकी अपनी माँ की उपस्थिति की आहट, कवि अपने घर के हर कोने में करता है:
‘माँ रसोई में है
छौं-छस! अक्षरशः
लो, लग गया अरहर की दाल में
ध्वनिशः स्वरशः प्रेमशः स्वादशः अर्ध्यशः’
ऐसी बात नहीं है कि कवि सिर्फ अन्यों के बारे में ही बातें करता है; उसे कभी-कभार अपने बारे में, अपनी मन:स्थितियों के बारे में भी बतकहियाने का भी ख़ूब जी करता है जैसा कि इन पंक्तियों में वर्णित है:
‘अपनी कुछ तस्वीरों में
दो कोने हम से भी भर दो।
बनाओ वो ही केवल जो तुम चाहो
पर, इधर-उधर कुछ हम-सा भर दो।’
कवि अजेय, प्रेम के अहसास में भावुक होने से कोई गुरेज़ नहीं करते; बल्कि, अपनी प्रियतमा की उपस्थिति का, भले ही भौतिक न हो, उन्हें बेचैनी से इंतज़ार है:
‘जीवन के अंतिम क्षण में
जब क्षण की चमक हो क्षण में तमस
जब रुके जैसे रुके श्वास तब बस
एकांत शयन में
तुम रहना नयन में।’
अजेय अपने वर्तमान के प्रति उतने ही संवेदनशील हैं, जितने की अपने अतीत के प्रति। इस संग्रह की कविताओं में अनेक स्थलों पर वे अतीत में चहल-क़दमी करते नज़र आते हैं। वे पुराण और पौराणिक पात्रों और पौराणिक मिथकों के प्रति भी अत्यंत संवेदनशील हैं; जिन्हें वे जानते हैं और भली-भाँति पहचानते हैं। एक दृष्टान्त देखिए:
‘सीता ने भी बाध्य किया था
इक गर्भवती तोती को
और उसके श्रापानुसार
दंड भोगा राम से विछोह का।’
इन कविताओं में कवि की आदर्शोक्तियाँ भी कई जगह रेखांकित की जानी चाहिएँ। प्रथमतः कवि-धर्म होता है—आम आदमी का मार्गदर्शन करना तथा अजेय अपने इस कवि-धर्म के प्रति अत्यंत जागरूक हैं और अपनी इस भूमिका में वे एक उपदेशक की भाँति उवाच करते हैं। कुछ मार्गदर्शक पंक्तियाँ यहाँ उल्लिखित हैं:
‘स्वप्नहीन टोकेंगे तुम्हें, लक्ष्यहीन रोकेंगे तुम्हें
आलस्यपूर्ण टोकेंगे तुम्हें, भाग्यवादी रोकेंगे तुम्हें
लेकिन तुम स्वप्न देखना, तुम सब स्वप्न देखना।’
कुछ ऐसी ही पंक्तियाँ यहाँ भी द्रष्टव्य हैं:
‘उठो! मन के तम को आशा से चीरो
क़दम बढ़ाओ पथ पर, लक्ष्य को टेरो।’
कवि के पास भावों-विचारों की बहुसंख्यता है। ऐसा नहीं है कि वह भावनाओं की उड़ान में किसी एक ही विषय पर बारंबार बातें करता हो। वह समाज के विभिन्न पक्षों पर अपने विचार प्रकट करता है। यह बात अलग है कि वह कविता-सुलभ संप्रेषणों और काव्यांगों के अनुपालन में अपनी सिद्धहस्तता पूरी तरह प्रतिपादित नहीं कर पाता है; पर, उसकी अभिव्यक्ति मारक और सटीक है। कविताई तो उसके व्यक्तित्व में शनैः शनैः अपनी जगह बना ही लेगी। इस बात का उसे भली-भाँति भान है कि अभिव्यक्ति के मंच पर उसे जनभाषा और लोकभाषा का प्रयोग करना चाहिए ताकि उसकी संप्रेषणीयता सशक्त और प्रभावी बन सके। यद्यपि वह स्वयं स्वीकार करता है कि:
‘बहुत साल पहले
इक चुटकी भर कविता का लावण्य था मुझमें
वो कुछ रहती थी मुझमें
और फिर मेरा छंद रूठ गया।’
लेकिन, वह अपने कवि-धर्म के प्रति अब बिल्कुल सचेष्ट है:
‘लौटाया है अब समय ने जो संवेदन
दौड़ा है भावरक्त कर धमनियों को चेतन।’
निःसंदेह, कवि का यह आत्मविश्वास उसे काव्यात्मक रचनाधर्म को धारित करने में समर्थ बनाएगा। वह अपने कवि-सुलभ कर्त्तव्य के प्रति पूर्ण आश्वस्त है। वह इसे एक संकल्प की भाँति लेता है:
‘खोल अवरुद्ध झरना कविता का
अविरल भाव कर निज मन का
मैं फिर लिखना चाहता हूँ
मैं अब बस लिखना चाहता हूँ।’
कवि के पास कथ्य की प्रचुरता है। भाषा में एक प्रकार की गंभीरता है। स्वर में प्रौढ़ता है और अभिव्यक्ति में पर्याप्त तरलता है। भावनाओं के संवेग में वह जो आलाप-प्रलाप करता है, वह बेशक मार्मिक है। कुछ कविताएँ तो सचमुच नए भावोद्वेग से स्नात है, जैसे कि ‘साबुन सा भगवान’, ‘इक बूँद की नियति’, ‘लापरवाह अनश्वर’ और ‘रखवाली’। ऐसा विश्वास है कि वह धीरे-धीरे काव्यांगों से परिचित होता जाएगा और कविता को कथात्मकता से अलग करते हुए एक मनमोहक काव्य संसार का सृजन करेगा। एक कवि की प्राथमिक योग्यता यही है कि वह जीवन और प्रकृति के प्रति यथार्थपरक दृष्टि रखे। अजेय में जीवन को समग्रता से समझने और समझाने की क्षमता है। वह जीवन और प्रकृति को अपने सामने रखकर इसके प्रतिरूपों को वर्णित करने में पूरी ईमानदारी बरतता है। वह एक आदर्शवादी कवि है और उसमें अपने समाज की परंपरा, इसकी रीतियों तथा इसके विशिष्टीकृत उच्चावचों के प्रति पूरी निष्ठा है। वह अपनी कविताओं में जो संसार रचता है, वह समाज और विश्व के लिए अनुकरणीय है। पाठकवर्ग उसकी सहज और सुबोध अभिव्यक्ति का सहजग्राही होगा। इस संग्रह की एक विशेष बात यह भी है कि इसमें संगृहीत कविताएँ बच्चों के लिए भी सुपठनीय और सुग्राह्य हैं। निष्कर्षत: यह कहना समीचीन होगा कि पाठकवर्ग अजेय जुगरान की इन कविताओं को न केवल हाथों-हाथ लेगा, बल्कि उसका प्रशंसक भी बनेगा। मेरी शुभकामनाएँ हैं कि कवि अजेय भविष्य में अजेय कविताओं का सृजक बनेंगे और हिंदी साहित्य में धमाकेदार उपस्थिति दर्ज़ करेंगे। उनके अगले काव्य संग्रह की प्रतीक्षा मेरे साथ-साथ एक बड़े पाठकवर्ग की भी होगी।
21 टिप्पणियाँ
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I read and enjoyed Antarang Satrang. I really enjoyed Manoj ji's review. Excellent!
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अजेय की कविताएं मन को छू लेती हैं । बचपन की कोमलता ,परिवार की जद्दोजहद,मां के प्रति प्रेम , जीवन के हर रिश्ते कर प्रति संवेदनशीलता ... सब को सहज भावनाओं में पिरोकर रचित सभी कविताएं बेहद सुंदर हैं...
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जुगरान जी की कविताएं आम जीवन और रिश्तों को जींवत कर देती है। मनोज जी की समीक्षा ने उनके कविता संग्रह को जींवत कर दिया।
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Lekhak wa samikshak ne behad bhavpurn tarique se apne vichar sankalan me prastut kiye hain.Hriday ko choo jane wala sankalan. Badhte chalo.
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इतनी सुन्दर समीक्षा! आनंद आ गया!
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Excellent!
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समीक्षा में दो लाइन कि कथ्य की प्रचुरता है, और भाषा में गंभीरता है , बहुत ही सुंदर हैं जो कि अजेय के लिए बहुत सटीक है , उनकी कविताओं और कहानियों की प्रतीक्षा रहती है
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वाह।
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उद्धृत कविता अंशों ने काव्य संग्रह ख़रीदने पर मजबूर कर दिया। इस समीक्षा में समीक्षक ने सिद्ध किया है कि प्रशंसा और आलोचना के संतुलन से भाषा और निखर जाती है। कवि और समीक्षक दोनों साधुवाद के पात्र हैं।
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My self and Shri Ajay jugran are friends from 1981 onwards when we met At IIT kanpur during kendriya vidyalaya meet and then incidently both of us landed in DBS college Dehradun for Graduation. Our relationship galvanised into such a mold that was accepted as the 4th son in the family. Ajay is God gifted , talented and unique human being who is grounded yet at high pedestal always on whatever he does. Thanks to Shri Manoj who had very aptly wrote a review on collection of poetry by which is simple reflection of his true inner being and the sanskar he got in VIRASAT from his simple parents . Good wishes for his next book.
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सचमुच बचपन की यादों का पिटारा अनमोल होता है। अत्यंत भाव प्रधान संग्रह। समीक्षक का हार्दिक धन्यवाद।
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Unique collection. Loved reading. Has description of all shades of emotions.
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डॉ मनोज मोक्षेंन्द्र द्वारा की गई समीक्षा एक दम सही और सारगर्भित है,सटिक है।
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बहुत ही बढ़िया कृति, बहुत सुन्दर।
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Beautiful nd apt explanation of the poems written in 'Antarung Satrung
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एक मनोरंजक संग्रह की सहज सरल समीक्षा जो मन को उत्साहित और प्रेरित भी करती है
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Excellent. Very well written
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बहुत मनोरंजनात्मक collection जो मन को उत्साहित करते हुए प्रेरनित भी करती है
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अंतरंग सतरंग में कवि अजय जी ने बहुत ही सन्दर ढंग से कविताओं काव्य और कहानियों के माध्यम से अपनी भावनाओं की प्रस्तुति की हैं ! ‘स्वप्नहीन टोकेंगे तुम्हें, लक्ष्यहीन रोकेंगे तुम्हें आलस्यपूर्ण टोकेंगे तुम्हें, भाग्यवादी रोकेंगे तुम्हें लेकिन तुम स्वप्न देखना, तुम सब स्वप्न देखना।’ और “उठो! मन के तम को आशा से चीरो क़दम बढ़ाओ पथ पर, लक्ष्य को टेरो।’ कुछ सराहनीय काव्य हैं ।
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बहुत हृदयस्पर्शी समीक्षा लेखक द्वारा । आपका आभार मनोज जी ।
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डॉ मनोज मोक्षेन्द्र जी की इतनी सुंदर समीक्षा से और लिखने की बड़ी प्रेरणा मिली। हार्दिक धन्यवाद!