अशेष पृथ्वी
डॉ. मनोज मोक्षेंद्रमैं अभी तक अशेष हूँ, अक्षुण्ण हूँ
प्रलयंकारी आपदाओं ने
सुनामियों और चक्रवाती प्रेतों ने
हार ली है बाज़ी मुझसे,
पर, आतंकित हूँ उल्कापिंडों से,
हा-हा-हा
डायनासोरों के बाद
बारी है इंसानों की,
लेकिन मैं रुकूँगी नहीं
झड़ियाँ लगाती रहूँगी
अभी अनगिन सृजनों की