डुप्लीकेट होने के फ़ायदे
डॉ. मनोज मोक्षेंद्र
(कुछ साल पहले लिख हुआ एक व्यंग्य)
ऊपरवाला भी बड़ा सोच-समझकर डुप्लीकेट यानी हमशक़्ल इंसान पैदा करता है। जो डुप्लीकेट पैदा होते हैं, उन पर ईश्वर की बड़ी कृपा होती है। बड़े-बड़े क्रिकेटरों, फ़िल्मी सितारों और राजनेताओं के हमशक़्लों के कहने ही क्या हैं? क्रिकेटरों के हमशक़्ल, लोगों की आँखों में धूल झोंककर आटोग्राफ़ देते हैं और छैल-छबीली लड़कियों की सोहबत हासिल करते हैं। राजनेताओं के हमशक़्ल संसद, विधानसभाओं और संवेदनशील राजभवनों में धड़ल्ले से घुसपैठ कर, न केवल राजनेताओं की क़ीमती सुख-सुविधाओं का महाभोग करते हैं, बल्कि नामचीन अफ़सरों की जी-हुज़ूरी का भी लुत्फ़ उठा आते हैं।
चुनांचे, सबसे ज़्यादा मज़े लेते हैं—फ़िल्मी सितारों के हमशक़्ल। वे सार्वजनिक स्थानों पर अचानक प्रकट होकर नौजवानों को दीवाना बना देते हैं। वहाँ उमड़ती भीड़ को देख, कोई ज़िंदा बम बरामद होने का भान होता है। आम आदमी उनके संसर्ग में आकर अपने को धन्य मानता है—जैसे कि उसकी बरसों की अधूरी आस पूरी हो गई हो, उन्हें साक्षात् ईश्वर का दर्शन मिल गया हो! बहरहाल, अभिनेताओं के हमशक़्ल कभी-कभार बड़े हैरतअंगेज़ कारनामें भी कर गुज़रते हैं। वे असली अभिनेता की चहेती प्रेमिका की कोठियों के निहायत प्राइवेट चैंबर में घुसकर उसके साथ रोमांस भी कर आते हैं।
इन डुप्लीकेटों को बड़ी-बड़ी कंपनियाँ अपने उत्पादों के विज्ञापन के लिए मुँहमाँगी क़ीमतें चुकाती हैं। मॉडलिंग का असली फ़ायदा तो इन्हें ही मिलता है। आजकल टीवी पर डुप्लीकेट मॉडलों की अहमियत कुछ यूँ भी बढ़ गई है कि दर्शक यही क़यास लगाते रह जाते हैं कि फ़लाना मॉडल वास्तव में असली है या नक़ली! कभी-कभार इसी मुद्दे पर दर्शकों को सट्टेबाज़ी तक करनी पड़ती है। जीत-हार की बाज़ियाँ भी लगानी पड़ती है। जो जीता, वो मालामाल! ऐसे में, काहिल-कुंजेहन क़िस्म के दर्शक भी बेहद जोश से भर जाते हैं, उनके नाकारेपन को रोज़ग़ार मिल जाता है।
अब, यह समझ लीजिए, जो डुप्लीकेट पैदा हुए हैं, उनकी लॉटरी खुल गई है। उनके भावी सात पीढ़ियों का उद्धार हो गया है। प्रायः ऐसा होता है कि किसी-किसी व्यक्ति की हुलिया अचानक किसी नामीगिरामी हस्ती से मेल खाने लगती है। उसे इस बात का अहसास होते ही उसे यक़ीन हो जाता है कि अब उसके दिन फिर गए हैं। उसे वह सब कुछ हासिल हो जाएगा जिसकी उसे अरसों से तमन्ना रही है।
यों तो, डुप्लीकेट पैदा होना एक क़िस्मत की बात है। अस्तु, कुछ लोगों में ख़ुद को किसी अभिनेता या क्रिकेटर की तरह अपनी हुलिया बनाने की होड़-सी लगी हुई है। उनका विश्वास होता है कि अगर ख़ुदा-न-ख़ास्ता किसी शाहरुख़, सलमान या सचिन से उनका चेहरा मिल गया तो उन्हें रोज़ी-रोटी के लिए कोई ख़ास हाथ-पैर नहीं मारना पड़ेगा। बड़े आराम से उन्हें खाने को ग़िज़ा, रहने को आलीशान मकान और ऐश करने को कामनियाँ मयस्सर हो जाएँगी। सो, वे बड़े-बड़े बुटीक सेंटरों और सैलूनों में जाकर अपना भाग्य आज़मा रहे हैं—किसी अभिनेता की तरह शक़्ल बनाने की होड़ में। ऐसे में, सौंदर्यवर्धक क्रीम-पाउडरों के निर्माताओं के भी भाग्य जाग रहे हैं।
लिहाज़ा, डुप्लीकेट बनने की सरगर्मी तेज़ होती जा रही है। अब, माँ-बाप भी अपने बच्चों की शक़्ल में किसी बड़ी हस्ती का हमशक़्ल देखने लगे हैं। ईश्वर उनकी आस पूरी करे! हम जैसे अभागे लोगों को जो ईश्वर के कृपापात्र बनकर किसी बड़े आदमी का डुप्लीकेट पैदा नहीं हो पाए, इस बात से संतोष होगा कि चलो! डुप्लीकेटों की पैदावार येन-केन-प्रकारेण बढ़ती जा रही है।
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