मुक्ति संघर्ष
आशीष कुमारपिंजड़े में क़ैद पंछी
करुण चीत्कार कर रहा
ऊपर गगन विशाल है
वह बंद पिंजड़े में रह रहा
टीस है उसके दिल में
तिल-तिल कर है मर रहा
निरीह कातर नेत्रों से
मुक्ति की राह तक रहा
उसे बंदिशें उन्होंने दीं
उन्मुक्तता जिन्हें पसंद
पर कतर कर रख दिए
दासता से जिन्हें डर रहा
तोड़ देगा सारे बंधन
गहन विचार कर रहा
डर के आगे जीत है
अब मुक्ति मार्ग पर बढ़ रहा
हथियार उसके चोंच थे
पिंजड़े पर वार कर रहा
दो क़दम पीछे हटे
फिर बढ़कर प्रहार कर रहा
हौसला चट्टान सा
मज़बूत इरादा रहा
तोड़ दिया लौह पिंजर
स्वतंत्र होकर जा रहा