बाँहों में तेरे

15-10-2022

बाँहों में तेरे

आशीष कुमार (अंक: 215, अक्टूबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

इश्क़ अनमोल था उन दोनों का। दोनों के बीच की केमिस्ट्री भी बहुत अच्छी थी। जीने मरने की क़समें खाया करते थे वो एक दूसरे के प्यार में। दोनों को देख कर ऐसा लगता था जैसे एक दूसरे के लिए ही बने हो। एक जिस्म तो दूसरा जान हो जैसे। 

यह कहानी है उस नए प्रेमी युगल की, जिन्होंने अभी-अभी प्रेम की दुनिया में क़दम रखा था। उनके मन में प्रेम अंकुर फूट रहे थे। इश्क़ की दुनिया में एक दूसरे के लिए पंख थे वो। नाम भी बहुत प्यारा था उनका—कमल और पंखुड़ी। 

दुनिया वालों से छुप-छुप कर मिलते थे—कभी मेले में, कभी हाट में तो कभी आम के बाग़ में। इश्क़ में छुप-छुप कर मिलने का भी अपना अलग ही मज़ा है। जब भी मिलते तो एक दूसरे के चेहरे खिल जाते। उस पल दो पल के साथ में उन्हें लगता था जैसे पूरी दुनिया ही मिल गई हो, पूरा जीवन जी लिया हो जैसे। 

पंखुड़ी को हमेशा शिकायत रहती थी कि कभी बाग़ में बुलाते हो, कभी हाट में मिलते हो तो कभी कहीं और। आख़िर कब हम एक होंगे। ऐसी जगह बताओ ना कमल, जहाँ मिलने के बाद कहीं और जाने की ज़रूरत ही ना हो। तुम मुझसे वहीं आकर मिलो। 

कमल हर बार उसकी बात को हँस कर टाल दिया करता था। बोलता था, “मेरी जगह तो तुम्हारे दिल में ही है। आख़िर पंखुड़ी के बिना कमल की औक़ात ही क्या!” 

पंखुड़ी बोल पड़ती, “दिल में तो तुम मेरे मरने के बाद भी रहोगे। मज़ाक मत करो। सच में बताओ ना।” 

कमल बोलता, “अच्छा बता दूँगा बाबा! कुछ वक़्त तो दो। अभी इस पल का तो आनंद उठा लो।”

पंखुड़ी को हर बार किसी तरह मना ही लेता था। 

दिन-पर-दिन उनका इश्क़ परवान चढ़ता गया। गली-मोहल्ले में चर्चे होने लगे। देखते ही देखते वो दुनिया वालों की नज़रों में खटकने लगे। मोहल्ले के कुछ आवारा लड़कों की नज़र बहुत दिनों से पंखुड़ी पर थी। वो उसे पाने की फ़िराक़ में लगे रहते थे। इसी बीच एक दिन उन्हें मौक़ा मिल गया। गर्मी के दिनों में दोपहरी का वक़्त था। आम के पेड़ पर मंजर लगे हुए थे। पंखुड़ी ने कमल को आज फिर से आम के बाग़ में बुलाया था। बाग़ में उसके पहुँचते ही उसके पैरों के पायल की झंकार से पूरा वातावरण गूँज उठा। मिलन के उत्साह में वह ज़रा जल्दी ही पहुँच गई थी क्योंकि उससे विरह की वेदना सही नहीं जा रही थी। वह आम के एक मोटे पेड़ के पास जाकर उससे टिक कर खड़ी हो गई और कमल के आने की प्रतीक्षा करने लगी। 

सहसा किसी ने आकर उसे पीछे से पकड़ लिया। पीछे मुड़कर जब उसने देखा तो वह गाँव का छँटा बदमाश भूरा था। उसने अपने आप को छुड़ाना चाहा, लेकिन भूरा की पकड़ इतनी मज़बूत थी कि वो अपने आपको छुड़ा ना सकी। उसके मुँह से चीख निकल पड़ी, “बचाओ कमल! कहाँ हो कमल। आओ मुझे बचा लो।” तब तक भूरा के तीन-चार दोस्त भी वहाँ छुप कर बैठे थे जो मौक़ा पाकर सामने आ गये। 

पंखुड़ी बहुत डर चुकी थी। बार-बार कमल को आवाज़ लगाए जा रही थी। सभी उसकी तरफ़ हँसते हुए आगे बढ़ रहे थे। भूरा ने कहा, “कोई नहीं आने वाला तुझे बचाने के लिए। किसका इंतज़ार कर रही है? आज हम से ही काम चला ले।” इतना कहकर वो फिर से ठठाकर हँस पड़ा। 

पंखुड़ी बोली, “मेरा कमल आएगा। एक-एक से बदला लेगा वह।” 

इससे पहले कि वह सभी उसके साथ कुछ कर पाते, कमल आ पहुँचा। एक पेड़ की टहनी तोड़कर उन सभी पर टूट पड़ा। पंखुड़ी भी उसका साथ देने लगी। लेकिन चार-पाँच लोगों के आगे वे कब तक टिक पाते। दोनों बुरी तरह घायल हो गए। सभी लफ़ंगे वहाँ से भाग निकले। वे दोनों वहीं पर गिर पड़े। पंखुड़ी के मुँह से धीमे से आवाज़ निकली, “कमल!”

कमल कराहते हुए पंखुड़ी की तरफ़ बढ़ा। पास पहुँचकर वह पंखुड़ी से लिपट गया। पंखुड़ी रोए जा रही थी। कमल की हालत देखकर उसे सदमा-सा लग गया था। कमल की साँसें उखड़ने लगीं। मगर उसने हिम्मत बाँधते हुए पंखुड़ी को दिलासा दिया। बोलने लगा, “अरे पगली! आज नहीं पूछेगी वो जगह कहाँ है?”

उसके मुख से आख़िरी शब्द निकले, “बाँहों में तेरे!“

कमल ने पंखुड़ी की बाँहों में ही दम तोड़ दिया। पंखुड़ी के मुँह से चीख निकल पड़ी और उसी चीख के साथ वह भी कमल की हमराह हो गई। एक दूसरे की बाँहों में ही उनकी दुनिया थी और एक दूसरे की बाँहों में उनकी कहानी भी सिमट चुकी थी। 

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