हर तरफ़ है भ्रष्टाचार

01-02-2022

हर तरफ़ है भ्रष्टाचार

आशीष कुमार (अंक: 198, फरवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

लूट खसोट का है व्यवहार
हर तरफ़ है भ्रष्टाचार
समाज का हो गया बंटाधार
हर तरफ़ है भ्रष्टाचार
 
लंबी लंबी लगी क़तार
चढ़ावा यहाँ अब शिष्टाचार
काम निकाले चाटुकार
हर तरफ़ है भ्रष्टाचार
 
मेधा हो गई है बेकार
मज़ा ले रहे पैरोकार
हो रहे सपने उनके साकार
हर तरफ़ है भ्रष्टाचार
 
डूबी लुटिया जो हैं ईमानदार
कुंठा के हो रहे शिकार
नौकरी तरक़्क़ी सबसे बेजार 
हर तरफ़ है भ्रष्टाचार
 
बदल रहा आचार-विचार
रिश्वत लगाती नैया पार
काले धन का है कारोबार
हर तरफ़ है भ्रष्टाचार
 
निष्ठा हो गई तार तार
सब कुछ लेते हैं डकार
व्यवस्था हो गई है लाचार
हर तरफ़ है भ्रष्टाचार
 
न्याय की है सबको दरकार
आँख मूँदे बैठी सरकार
पट्टी खुले तो मिटे अंधकार
हर तरफ़ है भ्रष्टाचार

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