अभी बादल ले रहा उबासी

15-07-2024

अभी बादल ले रहा उबासी

आशीष कुमार (अंक: 257, जुलाई द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

सबके चेहरे पर है उदासी
अभी बादल ले रहा उबासी
गरज चमक बस आँखें दिखाए
वर्षा बिन सबकी अँखियाँ प्यासी
 
जलती धरती खौलते लावा सी
श्रावण ऋतु भी एक छलावा सी
गर्मी की छुट्टी पर चले गए हो
क्या ख़ूब लुभा रही नानी मासी
 
कभी काया बनाते श्वेत कपासी
कभी ज़ुल्फ़ों की घनघोर घटा सी
तेरी शरारतें नित्य दिख रहीं
घटती-बढ़ती जैसे चंद्रकला सी
 
झलक दिखलाती बस आभासी
वर्षा को बना रखा है तूने दासी
यूँ दो चार आँसू तुम ना बहाओ
मत बाँधो ये गंगा शिव जटा सी
 
बरसो बरसो हे अंबर वासी
कोस रहे हैं तुझे धरती वासी
खेत खलिहान का हाल देखकर
दो बैलों की जोड़ी भी रुआँसी

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