नंदिनी साहू की चुनिंदा कहानियाँ

नंदिनी साहू की चुनिंदा कहानियाँ  (रचनाकार - प्रो. नंदिनी साहू)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
स्कार्लेट फ़्लाई— लाल मख़मली रानी 

मैं बस स्कार्लेट मक्खी यानी लाल मख़मली रानी के बारे में फ़ेसबुक पर किसी की पोस्ट को पढ़ रही थी, जिसका सार इस तरह था—जिसे हम ओड़िया में साधबा बोहू कहते हैं, जिसका अर्थ है ‘नाविक की दुल्हन’, वैज्ञानिक रूप से ट्रॉम्बिडियम ग्रैंडिसिमम नामक कीड़ों की प्रजाति है। इसके अन्य वैकल्पिक नाम ‘बीर बहूटी’, ‘बीरबाबोटी’, ‘स्कार्लेट फ़्लाई’, ‘लेडी फ़्लाई’, ‘मख़मली बुची’, ‘अरूद्रा पुरुगु‘ और ‘रानी कीड़ा‘ (हिंदी/उर्दू में) हैं। मानसून की शुरूआत में ये कीड़े बड़ी संख्या में दिखाई देते हैं और इसलिए इन्हें ‘रेन माइट्स‘ भी कहा जाता है। गुजरात में मख़मली कीड़े को ‘गोकल गाय‘ या ‘मामा नी गाय‘ के नाम से भी पुकारा जाता है। अजीब बात है, लेकिन कथित तौर पर पारंपरिक भारतीय चिकित्सा में इसका प्रयोग किया जाता है (इस लाल मख़मली कीड़े के तेल को पक्षाघात के इलाज के लिए उपयोगी माना जाता है) और यौन इच्छा को बढ़ाने की इसकी कथित क्षमता के कारण, इसे कुछ विशेषज्ञ ‘भारतीय वियाग्रा‘ भी कहते हैं। यह अपने शिकारी के संपर्क में आने पर अपने पैरों को मोड़कर अपनी रक्षा करती है, लेकिन उन्हें मुख्य आंतरिक अंगों के सामने रखना भी है, जिसे उठाए जाने पर स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। और जब यह महसूस करती है कि यह ख़तरे से बाहर है तो अपने पैर खोलकर आगे बढ़ना शुरू कर देती है; और यह कुछ मिनटों के बाद फिर से चलती दिखाई देगी, अगर इसे नहीं छुआ जाए . . . 

इसी लाल मक्खी के बारे में एक यूट्यूब पोस्ट था—मख़मली-लाल, रोमांटिक कीड़ों का समुच्चय, एक रिमझिम बारिश वाले आकाश के नीचे एक हरे रंग के परिदृश्य पर घूमते हुए। 

मेरी आँखें नम थीं। वे मुझे अतीत में खींच ले गई। भारतीय घर में, न्यू जर्सी से। 

उसकी एक आदत थी, जैसे-जैसे वह बड़ी होती गई, उसकी यह आदत भी ख़राब हो गई, उसे मुँह फुलाने की। मेरी एक सबसे अच्छी सहेली है, माधवी लता, जयपुर, राजस्थान से। वह रात-रात जागती रहती है और पूरे दिन लगातार और वह सारे कामों को जल्दी-जल्दी करती रहती है। 

वह जो कुछ भी करती थी, अच्छी तरीक़े से करती थी—चाहे, विश्वविद्यालय में अपने छात्रों और शोधार्थियों के साथ काम करना हो, चाहे सेमिनार में भाग लेना हो या कोई पुस्तक विमोचन का कार्य क्यों न हो, लेकिन फिर भी वह उनमें किसी में भी तल्लीन नहीं हो पाती थी। वह सब सिर्फ़ उसका कौशल था, जैसे उसके सामाजिक तौर तरीक़े, जो आकर्षक और कार्यात्मक थे, लेकिन उनका उसके वास्तविक जीवन से कोई तालमेल नहीं था। स्वभाव से वह एकान्त-प्रिय थी, और वह अधिकांश समय शाम को अकेले बिताती थी। उसका किसी से भी बात करने का मन नहीं करता था, सिवाय कुछ ज़रूरी कामों को छोड़कर। तो वह अपने पेइंग गेस्ट मित्र सिद्धार्थ, सिड, से कहती थी, जिसने शायद ही कभी ‘पे‘ किया हो। अक़्सर जब वह फोन लगाती थी तो मैं किट्टी पार्टियों में व्यस्त होने के कारण घर नहीं होती थी, यहाँ तक कि वह कभी मेरी रिकॉर्डिंग मशीन पर कोई संदेश नहीं छोड़ती थी, वह केवल हताशा में डूब जाती थी। कभी-कभी मेरी नौकरानी से जल्दी-जल्दी कहती, “उसे कहो कि लता का फोन था,” कुछ हद तक फुसफुसाते-फुसफुसाते। कभी-कभी, वह कुछ भी नहीं कहती थी, लेकिन गुप्त कॉलर की तरह हैंग हो जाती थी। 

शायद मेरे और सिड के बारे में सोचते हुए, जो अब उसका एकमात्र परिवार था, वह बिना पलक झपकाए ऊपर-नीचे होती रहेगी और कई सिगरेट पीएगी। उसकी धड़कनें धीमी पड़ने लगती थी। हर समय, उसके शरीर में और उसकी खोपड़ी के अंदर भी, और वह नहीं जानती थी कि उसे क्या हो रहा है! 

यद्यपि वह मुझसे हमेशा भावुकता से जुड़ी हुई थी, लेकिन इन दिनों बिजली के झटके लगने से धनुषनुमा शरीर मुड़ने के लक्षणों इस तरह पहले कभी नहीं देखा। वह एक अकेली औरत होती जा रही थी। उसके फ़्लैट में दिन-रात एक समान ही थे। बड़े झूमर के नीचे, वह अपने लिए नींबू की चाय बनाकर बड़े मग में लेकर चारों ओर घूमती रहती थी, अपने विचारों में तल्लीन, क्योंकि सिड अपने आप में खोया रहता था। अपनी युवावस्था में वह एक आकर्षक बॉलीवुड अभिनेत्री जॉली की तरह दिखती थी, लेकिन अब वह दिखाई दे रही थी एक दुखद नायिका की तरह—लंबी, स्थिर, कच्चे रेशमी वस्त्र पहने हुए, उसने बाल कभी सँवारे तक नहीं थे, पिघलती आँखें लिए हुए, वह हमेशा कुछ भयानक एकान्त संगीत सुनती हुई लगती थी। फिर कभी वह देर रात में जिस शान्ति से हरी चाय पी रही होती थी, जैसे मध्याह्न का समय हो। 

सिड कुछ रात अपने दोस्तों के घर पर रह जाता था, बस उससे बचने के लिए। वह यह भी भूल जाता था कि यह वही थी जिसने उसे कभी भी किराए देने के लिए नहीं कहा, भले ही वह उसका पेइंग गेस्ट था। और उसके सारे बिलों का भुगतान कर रही थी। यह वही थी जिसने उसका सबसे ज़्यादा ध्यान रखा। 

“बेशक, उसके साथ झगड़ने का कोई फ़ायदा नहीं है,” उससे झगड़ने की बात परेशान करती रहती थी, वह हर समय बड़बड़ाती रही। “उससे किसी भी तरह की पूछताछ करने का कोई फ़ायदा नहीं है। उससे अपने विचारों का आदान-प्रदान करना तो और ज़्यादा ख़तरनाक! मैंने उसे फोन लगाने की कोशिश की; कोई जवाब नहीं! बेकार है यह मूर्ख मोबाइल। किसी दिन मैं इसे लात मारकर टुकड़े-टुकड़े कर दूँगी!” 

दिन-ब-दिन मैं लता और सिड के बीच फँसती हुई महसूस कर रही थी। आख़िरकार, मैं कोई ‘पीड़ादायक चाची‘ नहीं हूँ! मैं केवल उसकी अतिथि और दोस्त थी। मैं अपने पति चक्को (जो जेएनयू, नई दिल्ली, भारत में फ़ुलब्राइट छात्रवृत्ति पर आए हुए थे) के साथ दस महीने के लिए भारत की यात्रा पर आई हुई थी। पहले दो महीने मैं उनके साथ दिल्ली में रहकर पूरी तरह ऊब गई थी, फिर मैंने अगले दो महीने ओड़िशा में अपने बूढ़े माता-पिता के साथ बिताए। भारत में और पाँच महीने कैसे बिताएँ जाए? चक्को व्यस्त थे, हमेशा की तरह, बाक़ी सब कुछ भूल जाते है जब उनके कैरियर की बात आती थी। जब मैंने उन्हें इस बात की शिकायत की, तो उन्होंने सुझाव दिया कि मैं अपने बचपन की सहेली माधवी लता के साथ अपना समय क्यों नहीं बिता देती, जो राजस्थान विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर हैं और वर्षों से अपने पति से अलग रहती हैं। 

इस प्रकार, मैं पाँच दीर्घ महीनों के लिए उसकी मेहमान बन गई। 

उसने मेरा बहुत उत्साह-उमंग के साथ स्वागत किया। मेरे लिए वे सारे भारतीय व्यंजन बनाए, जो मैं दो दशकों तक न्यू जर्सी में रहने के लिए भूल-सी गई थी। हमने बहुत ख़रीदारी की, गोविंदजी मंदिर, जंतर-मंतर, हवा-महल, मोती डूंगरी और लक्ष्मी नारायण मंदिर, जगत शिरोमणि मंदिर, जयगढ़ क़िला, नाहरगढ़ क़िला, जल महल, अंबर पैलेस और फ़ोर्ट कॉम्प्लेक्स, स्वर्गाशूली/इसार लाट, राम निवास बाग़, अल्बर्ट हॉल, डॉल म्यूजियम, सिसोदिया रानी गार्डन, विद्याधर गार्डन, गायटोर, बिरला तारामंडल और चोखी ढाणी। राजस्थान में हम ख़ुशी से सरोबार थे। उन दिनों हम छोटी बच्चियों की तरह खिलखिलाकर हँस रहे थे। पहले कुछ दिनों सब कुछ सामान्य लग रहा था। किसी भी अन्य एकल महिला की तरह लता सिड पर थोड़ा अधिक अधिकार जताती थी, कभी-कभी ऐसे व्यक्ति के लिए सुरक्षात्मक रवैया अपनाती थी, जो तीस वर्ष से अधिक आयु का था। वह मेरे बारे में भी पजेसिव थी! जैसे वह वर्षों पहले हुआ करती थी। 

मैं और लता पड़ोसी सहेलियाँ थीं। एक ही क्लास में पढ़ती थीं, वह हर चीज़ में मुझसे बेहतर थी। लेकिन मैं ईर्ष्या से कोसों दूर थी, हमारे बीच इस तरह का बंधन था। बल्कि मेरे लिए बहुत बड़ी राहत थी कि वह मेरे असाइनमेंट लिखती थी, मेरी कक्षा के काम के साथ-साथ होमवर्क भी करती थी, मेरे लिए निबंध और वाद-विवाद के लिए आलेख लिखती थी, मेरे बिखरे बालों को कंघी करती थी, जब भी मैं आलसी हो जाती थी, तो वह मुझे एक बच्चे की तरह खिलाती थी, घर जाने से पहले मेरे बेडसाइड टेबल पर अलार्म घड़ी पर स्विच करती थी ताकि अगली सुबह मैं समय पर स्कूल जा सकूँ, जो कोई पढ़ाई में तेज़ नहीं होने के लिए शर्मिंदा करने की कोशिश करते तो वह उनसे लड़ाई करती। एक बार तो वह मेरी माँ पर भी बिफर पड़ी जो, जो मुझे अध्ययन के घंटों के दौरान रसोई में उसकी मदद करने में व्यस्त रखती थी। 

“मासी, मृणालिनी कैसे पढ़ सकती है, अगर वह हर शाम खाना बनाएगी? आप अपने टीवी धारावाहिकों को देखने से पहले खाना पकाने का काम ख़त्म क्यों नहीं कर लेती हो? हर दिन वह अपना होमवर्क किए बिना स्कूल जाती है और प्रार्थना कक्षा के दौरान उसे करने लगती है।” 

मेरी माँ ग़ुस्सा हो गई थी। उसने लता को कुछ हफ़्तों तक हमारे घर आने के लिए मना कर दिया था। 

लता ने तय कर लिया था कि वह ‘दुनिया को न्याय‘ दिलाकर रहेगी! एक बार जब उसे पता चला कि मेरी माँ मेरे भाई को मुझसे और मेरी बहन से ज़्यादा पॉकेट मनी दे रही है। वास्तव में मेरी माँ को मेरे भाई को लाड़-प्यार करने की आदत थी। यहाँ तक कि जब मैं उसे अपने प्रयोगशाला मैनुअल ख़रीदने के लिए कुछ पैसे माँगती थी, तो वह मुझसे सौ सवाल पूछने लगती थी, लेकिन मेरे भाई के लिए हर महीने क्रिकेट बल्ले और गैजेट्स ख़रीदने में ऐसा नहीं होता था। लता ने इसे पूरी तरह से सार्वजनिक करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 

मेरी माँ उससे नफ़रत करती थी, और हम भी ऐसा करने के लिए बाध्य थे। उसे नापसंद करना सुरक्षित लगता था और सबसे वांछनीय भी। 

मेरे माता-पिता अपने स्वयं के विश्वास की दुनिया में ख़ुश थे—वे सबसे अधिक उन पर विश्वास करते थे, जो उनके मूड के अनुरूप उनके अविश्वास का जानबूझकर निलंबन करते थे। वे कभी भी व्यावहारिक नहीं थे, हमेशा टीवी धारावाहिकों से अपने पसंदीदा पात्रों के बारे में बात करने में व्यस्त थे मानो वे उनके परिवार के सदस्य हो। मेरा मतलब है कि वे टीवी धारावाहिकों के पात्रों के मुद्दों को हमारी तुलना में ज़्यादा गंभीरता से लेते थे। 

मैं अकेली छोड़ दी जाती थी, लेकिन लता के लिए। उसकी घड़ी मेरे चारों ओर घूमती थी। ऐसा लगता था जैसे वह अपने भाई-बहनों से उतनी जुड़ी हुई नहीं थी, जितनी कि मेरे साथ। मैं उसकी पढ़ाई के अलावा उसकी दुनिया थी। एक ऐसी दुनिया, जो सरल, शुद्ध और आनंददायक थी। 

लता अपने स्कूल के दिनों से ही महत्वाकांक्षी थी, मेरे बिल्कुल विपरीत। वह बड़ी होकर ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर बनना चाहती थी। प्यार और देखभाल करना उसके स्वभाव में शामिल था। 

मैं उससे कहती थी, “मैं तुम्हारी तरह जीवन में ‘कुछ‘ नहीं बनना चाहती, लता! मैं तो केवल अमीर आदमी से शादी करूँगी, खाना पकाऊँगी, कपड़े पहनूँगी, अपने घर को साफ़ रखूँगी, दो बच्चे पैदा करूँगी—एक लड़का और एक लड़की—और एक सद्गृहिणी बनूँगी।” 

ऐसा ही हुआ भी, जिसे मैं अब अमेरिका में गर्व और दृढ़ विश्वास के साथ निभा रही हूँ। शादी की हर सालगिरह पर मुझे चक्को एक नया हीरे का हार देते हैं। हीरों के हार का मेरा संग्रह अब शानदार हो गया है, और इसलिए मेरा जीवन भी! 

लता मुझे ‘मख़मली रानी‘ कहती थीं, जब हम छोटे थे—वह सोचती थी कि मैं निर्दोष, सुंदर, रोमांटिक, कमज़ोर और मख़मली हूँ। वह मुझ पर इतना प्यार लूटाती थी, जितना माता-पिता अपने बच्चों पर। 

बारहवीं बोर्ड की परीक्षा में, हम दोनों ने विज्ञान को वैकल्पिक विषय के तौर पर चुना था। लता अच्छे अंकों के साथ पास हो गई, और मैं दो बार असफल रही। मेरे माता-पिता और रिश्तेदारों ने लगभग हार मान ली थी, लेकिन लता ने नहीं। 

“इस बार तुम कला संकाय में अपना फ़ॉर्म भरो। मैं तुम्हारे लिए नोट्स तैयार करूँगी और यह सुनिश्चित करूँगी कि तुम सारे प्रश्नों का उत्तर अच्छी तरह से सीखो।” 

उसने वास्तव में ऐसा ही किया भी। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, वह दो घंटे या उससे अधिक समय तक मेरे साथ बैठकर इतिहास, राजनीति विज्ञान, शिक्षा और तर्क आदि विषयों पर नोट्स तैयार करती थी—वे भी सभी अंग्रेज़ी में। अंग्रेज़ी में कुछ भी समझना मेरे लिए कठिन काम था। इसलिए मैं बाज़ार से उन सभी विषयों पर स्थानीय भाषा वाली कुंजियाँ ख़रीदकर पढ़ती थी; लेकिन मेरे लिए नोट्स तैयार नहीं करने की कहकर उसे हतोत्साहित करने के लिए मेरे भीतर हिम्मत नहीं थी। मेरी परीक्षा से एक दिन पहले, उसे मेरी कुंजियाँ मिल गईंई। वह पूरी तरह से सदमे में चली गई! 

“तुमने मुझे क्यों नहीं बताया? मैं व्यर्थ में अपना इतना समय बर्बाद करती रही!”

“क्या तुम किसी की बात सुनती? तुम बहुत ज़िद्दी हो। वैसे भी, अब दृश्य मत बनाओ।” 

वह चुप रही, निश्चित रूप से एक घंटे तक रोने के बाद। 

एक बार जब हम कॉलेज में पढ़ते थे, तो प्रथम वर्ष के छात्रों के लिए एक राज्य स्तरीय निबंध प्रतियोगिता का आयोजन हुआ था। लता पहले से ही अपने अंतिम वर्ष में पहुँच गई थी क्योंकि वह अब तक मेरी सीनियर हो गई थी। प्रतिभागी को पाँच हज़ार शब्दों का निबंध लिखकर उसे डाक द्वारा आयोजकों के पास भेजना था। लता ने मेरा नाम पर निबंध लिखकर भेज दिया और मुझे पहला पुरस्कार मिला! सभी ने ख़ुशी जताई और मुझे बधाई दी। मगर मेरे अंदर उत्साह नाम की चीज़ नहीं थी। कुछ सप्ताह बाद, उसने मुझे निबंध की फोटोकॉपी देने के लिए कहा, जिसे उसने मुझे ध्यान से रखने के लिए कहा था, ताकि उसे आलेख में बदलकर प्रकाशन के लिए किसी पत्रिका को भेज सके। लेकिन मैं उसे कहीं पर रखकर भूल गई थी। आख़िरकार, वह निबंध ही तो था! मगर लता परेशान हो गई। फिर वह ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। लेकिन उसने मेरे किए पर कभी भी मुझसे नफ़रत नहीं की। यहाँ तक कि उसे लेने के लिए भी नहीं . . . 

जब मैं अपनी एम.ए. अंतिम वर्ष की परीक्षा दे रही थी, तो वह अपनी पीएच.डी. कर रही थी। मैं अब और ज़्यादा नहीं पढ़ना चाहती थी, लेकिन उसके लिए। मेरे पिता भी इस बात पर अड़े हुए थे कि शादी करने से पहले कम से कम मुझे स्नातकोत्तर होना चाहिए। उस दिन मैंने काग़ज़ के छोटे टुकड़ों पर उन सभी कठिन सूत्रों को लिखकर उन्हें अपनी पोशाक के आस्तीन के नीचे छिपाकर परीक्षा हॉल में ले गई। प्रो. दास ने कुछ ही समय में मुझे पकड़ लिया और चेतावनी दी। लेकिन मैंने चिट्स की मदद लेने का तय कर लिया था। जब उन्होंने मुझे दूसरी बार परीक्षा में धोखा देते हुए पाया, तो मेरी कॉपी छीन ली, मुझे चेतावनी दी कि मैं पाँच साल तक परीक्षा में नहीं बैठ पाऊँगी और मुझे बाहर निकलने के लिए कहा। 

मैं लता के पास भागकर गई। मेरे पास कोई और विकल्प नहीं था। वह प्रो.फेसर दास की पसंदीदा छात्रा थी, उनके विभाग में वह जूनियर रिसर्च फ़ेलो थी। उसने उनसे विनती की कि वे मुझे अन्य पेपर लिखने की अनुमति दे। उन्होंने उसे अच्छा ख़ासा तीस मिनट के लिए डाँटा—कि उनके विभाग में जूनियर्स के लिए वह रोल मॉडल होने के बाद भी वह इस तरह के अनैतिक कार्य का समर्थन कैसे कर सकती है? उसने सहन किया, मुझे दूसरे पेपर लिखने की अनुमति दे दी गई और मैं किसी तरह पास भी हो गई . . .

लता सदैव इस बारे में चुप रही। ख़ैर, यह उसका कर्त्तव्य था, उसकी ज़िम्मेदारी थी, मेरे सम्मान की रक्षा करना। आख़िरकार, वह मेरी सहेली थी! 

कुछ साल बाद हम दोनों की अरेंज्ड मैरिज हो गई। वह किसी विश्वविद्यालय में शिक्षिका बनी और मैं चक्को के साथ अमेरिका चली आई। अब हमारी ज़िन्दगी पूरी तरह से अलग हो गई थी। मैं अपने घर-संसार में व्यस्त हो गई और उसे लगभग भूल-सी गई, मगर वह ऐसा नहीं कर सकी। वह अभी भी वहीं थी, जहाँ मैंने उसे छोड़कर गई थी। 

वैसे भी, उसके प्यार का अगला ‘लक्ष्य‘ उसका पेइंग गेस्ट, सिड था। 

अंतिम अलगाव से पहले कई वर्षों तक लता ने अपने झगड़ालू पति के साथ समझौता किया था। वह कभी भी उससे प्यार नहीं करती थी; और अब ऐसा लग रहा था जैसे पति के लिए रखा हुआ प्यार वह सिड पर बरसा रही थी। 

सिड कुछ हद तक लता के पिता की तरह दिखता था, अपने रंगरूप और नाक-नक्श में। 

उसे अफ़सोस था कि वह उस ‘लड़के‘ के लिए कुछ ख़ास नहीं कर सकी; वह चाहती थी कि उसे दुनिया भर की ख़ुशी दे, लेकिन उस लड़के ने इस तरफ़ ध्यान नहीं दिया। जितना अधिक वह उसे चाहती थी, उतना ही अधिक वह दूर होता जा रहा था और कभी-कभी तो उससे नफ़रत भी करने लगा था। लेकिन इस वजह से वह उसे और अधिक प्यार करने के लिए प्रेरित हुई और अधिक समय तक सोचने लगी कि वह उसे ख़ुश करने के लिए और क्या कर सकती है। जैसे कि वह सालों पहले मेरे साथ किया करती थी। उस बहुप्रचारित ‘नैतिक समर्थन‘ को वह सबसे पहले मुझसे प्राप्त करना चाहती थी, फिर शायद अपने पति से और अब सिड से। 

लता ख़ुद एक बुद्धिमान स्त्री थी, और उसे विश्वास था कि सिड भी वैसा ही होना चाहिए। वे सारी पुस्तकें जिसे उसने उसे पढ़ाया था, उससे वह प्रखर बन गया होगा! उसे यक़ीन था, अब तक, ज्ञान उसके रग-रग में घुला हुआ है। 

जेएनयू में चक्को की फ़ुलब्राइट फ़ैलोशिप के दौरान मैं उससे जयपुर में दुबारा मिल रही थी। 

लता अब अपने चमड़े के सोफ़े पर एमेरिटा सर्कस के एक जानवर की तरह पड़ी हुई थी, लेकिन यह भी सच था कि वह दूसरों के भीतर अथाह गहराई तक देख सकती थी कि वहाँ क्या हो रहा था। उसकी यह एक प्रकार से प्रवृत्ति थी। उसके पास एक कौशल था, एक ईश्वर प्रदत्त उपहार के रूप में, कुछ लगभग उसके स्वभाव के लिए अनावश्यक था, जिसने उसे भयंकर अहंकारी बना दिया था। लोकप्रियता, प्रशंसा, नाम और प्रसिद्धि से वह अब ऊब चुकी थी। सिड उसके टेस्ट-ट्यूब बेबी की तरह था, अपने प्यार और देखभाल का उस पर प्रयोग करने के लिए। वह, वैसे भी, बच्चों के साथ अद्भुत तरीक़े से घुलमिल जाती थी और महिला होने के कारण, निश्चित रूप से। 

“फायोलिन, कैटरीना और क्या नहीं! महिलाएँ तूफ़ान के नामों पर एकाधिकार जमाने के लिए क्यों आई थीं?” वह कभी भी किसी भी हिंसक महिलाओं को पसंद नहीं करती थी। 

जयपुर में उन दिनों के दौरान वह कई बार मुझे आलिंगन और चुंबन करने के लिए, यहाँ तक कि सिड के लिए भी भागती थी, लाड़-प्यार जताने के लिए। मुझे उसके इस तरह के स्नेह-प्रदर्शन झेलने की आदत पड़ चुकी थी। लेकिन मुझे लगा, अवश्य उसे अब मुझे या सिड से प्यार के ऐसे नख़रे दिखाना बंद कर देना चाहिए था। 

वह कभी-कभी हमारा साथ खो जाने के डर से बात करती थी। घर की कुछ पार्टियों में सिड अपनी तेज़ आवाज़ में उसे चिढ़ाता था, “क्या आप हमें अपने रमणीय सान्निध्य की नाज़ुक ख़ुशी नहीं देंगी, मैम?” उसके दोस्त टेढ़ी निगाहों से उसकी तरफ़ देखते हुए कहते, “क्या तुम जानते हो कि तुम्हारी आवाज़ बहुत कर्कश है?” 

वह बाद में शिकायत करता था, “आप हमेशा ऐसे बोलती हो जैसे दर्शकों के सामने व्याख्यान दे रही हो। मुझे लगता है, यह आपकी यह आदत पड़ गई है कि आपके लिए अब एक साधारण इंसान की तरह बोलना नामुमकिन है। यह आपका क्लासरूम नहीं है, प्रोफ़ेसर!” 

लता मुस्कुराते हुए चली जाती थी, यह दिखाने के लिए कि यह सिर्फ़ एक मज़ाक था और इससे उसे चोट नहीं पहुँची थी। 

“वह वहाँ है! अब हम मुफ़्त में एक बहुत ही रचनात्मक सत्र लेने जा रहे हैं। आख़िरकार उसका जीवन किसी पाठ्य पुस्तक से कम नहीं है!”

मुझे कुछ अजीब लगा, लेकिन मैं क्या कर सकती थी? मैं असहाय थी। उसके परिवार के सदस्यों की तरह, मैंने भी उसे आज जो कुछ हुआ भी था, उसके लिए उसे दोष देना सुरक्षित समझा। वह अपने पति के साथ एडजस्ट हो सकती थी और हमारी तरह सामान्य जीवन बीता सकती थी! आख़िरकार, पति तो पति है! तो क्या हुआ अगर उसने कभी ग़ुस्से से बाहर निकाल दिया? उसका मूड ख़राब हो सकता है। हमें देखो; हमने भी तो समझौता किया है, भले ही हमारे पतियों ने हमारे साथ मारपीट नहीं की! और वह वैवाहिक बलात्कार, घरेलू हिंसा और उन सभी चीज़ों की बात करती है! एक पति बलात्कार कैसे कर सकता है? सेक्स उसका अधिकार है। आख़िर एक पति और किसलिए है? मैंने लता की तरह करियर नहीं बनाया, तो क्या? आज मेरे पास सब कुछ है। उसकी बहन को देखो। वह भी फ़ैशन डिज़ाइनर बनना चाहती थी, लेकिन अब वह एक गृहिणी के रूप में अच्छी है। और आज लता को देखो—अकेली, अपने घर, अपनी जगह और सब कुछ एक पेइंग गेस्ट साझा कर रही है जो पैसे देना तो दूर की बात बल्कि उल्टा उसका शोषण कर सकता है और कुछ भी नहीं। 

अपने घर के इस खोल में सिमटकर इन दिनों लता कुछ शांत और निजी सुखों को सुसंस्कृत करने लगी। वह पसंद करती थी, सबसे अधिक चीज़ों को सजाकर व्यवस्थित रूप से पंक्तिबद्ध रखना। अलमारियों पर ज़ार, आड़ू छेद भरना। परन्तु दुर्घटनावश कोई उसकी पंक्तियों को बिखेर देता था, तो भी वह कभी नहीं चिढ़ती थी, क्योंकि उन्हें पुनर्व्यवस्थित करने का एक आकस्मिक अवसर मिल जाता था। जो भी उसे ले जाने योग्य सामान मिलता था, तो वह उसे अपने आकार या रंग के अनुसार, साफ़ पंक्तियों में व्यवस्थित कर देती थी। 

इसके बाद, उसकी गहन सफ़ाई। 

वह सब कुछ साफ़ करेगी, धूल झटकेगी, झाड़ू बुहारेगी, फ़र्श, बिस्तर, झूमर, अलमारी, अलमारियों, यहाँ तक कि बाथरूम भी। सिड या मैं स्नान कर बाहर आने के बाद, वह चुपचाप वाइपर से इकट्ठा हुआ पानी पोंछगी और फ़र्श, दर्पण, साबुन, बस सब कुछ साफ़ करेगी। उसके बरतन और वॉश बेसिन चमकना चाहिए। उसने एक ड्राइंग शीट पर साफ़-सुथरे अक्षरों लिखा, “मैं समझती हूँ कि जिस तरह से आप बाथरूम को पीछे छोड़ते हैं, उससे लगता है कि आप मुझसे कितना प्यार करते हैं।” 

यह कैप्शन बाथरूम की दीवार पर चिपकाया गया था, पवित्र बाइबल की किसी आयत की तरह। 

भगवान! प्यार और बाथरूम! 

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ये दोनों आख़िरी चीज़ें हैं, जिसे जोड़ने के बारे में कोई सोच सकता है! 

और उसे अपनी पसंद की चीज़ों से चिपके रहने की यह नृशंस आदत थी। उसके पास कम से कम बीस जोड़े सैंडल और चप्पल थे, अपने पहनावे के साथ मेल खाते थे, मगर वह हर समय अपनी भूरे रंग की चप्पलें पहनना पसंद करती थी—कम से कम बीस साल से वह पहन रही थी, और कहा करती थी, “ये चप्पलें पहनते-पहनते मैं मर जाऊँगी!” 

बाक़ी अन्य सारे सैंडल और चप्पलें अपनी नौकरानियों को उदारतापूर्वक दे दी थीं, मगर यह चप्पल नहीं। कभी नहीं। वह गहरा कत्थई गाउन और इन गंदी-सी चप्पलों को पहनना पसंद करती थी, जिसे हम पहले से ही पसंद नहीं करते थे। 

उस साल मुझे अपना 55वाँ जन्मदिन उसके घर में बिताना पड़ा। वह पचपन मोमबत्तियों को जलाने के लिए उत्सुक थी—जन्मदिन की पार्टी को अनुशासन और शिष्टाचारपूर्वक आयोजित करना चाहती थी और वह ख़ुद उसकी ज़िम्मेदारी उठा रही थी। उसने महसूस किया-कि वह हर चीज़ के बारे में सबसे ज़्यादा व्यवस्थित, अनुशासित थी! 

मैं और सिड केक पर मोमबत्तियाँ जला रहे थे। हम केक उसके कमरे में ले गए थे और इसे वहाँ एक गोल संगमरमर की मेज़ पर सजा दिया ताकि वह हमें देखकर ख़ुश हो सके। लेकिन वह ख़ुश नहीं हो रही थी, वह हमें तिरछी निगाहों से मोमबत्तियाँ जलाते हुए देख रही थी। और जैसे कि यह बुरी चीज़ नहीं थी, उसने केक के केंद्र में आइसिंग पर अपने हाथ से बड़े अक्षरों में 55 लिखा। 

“छत पर जाकर किसी की उम्र चिल्लाकर बताने की बिल्कुल भी कोई आवश्यकता नहीं होती है,” सिड बड़बड़ाया। “मैडम, बेहतर होगा कि आप जाकर अच्छे कपड़े पहनकर आएँ। आख़िरकार, आज आपकी सबसे अज़ीज़ सहेली का जन्मदिन है!”

लता ने इसे बहुत गंभीरता से लिया। 

सारा मेकअप और ड्रेस-अप के बाद का अंतिम परिणाम वैसे भी उल्लेखनीय है, और वह एक पुतले की तरह लग रही थी, जिसकी काया तरह-तरह के आभूषणों से चमक रही थी और उसकी पलकों पर उसके रेशमी परिधान से मेल खाता हुआ आसमानी रंग किया गया था। वह अपने ऊपरी दीवार पर लगी विक्टोरियन पेंटिंग की तरह लग रही थी, अपनी नीली आँखें और त्वचा की चमक से। 

मैंने उसकी तरफ़ ध्यान से देखा! 

घर में कुछ ऐसा माहौल था, जिसने हम सभी को पूर्णता के साथ अपने कर्त्तव्य निभाने के लिए मजबूर किया। हो सकता है कि उसकी कठोर दिनचर्या ने हम सभी को एक फौलादी एजेंडे से बाँध दिया हो। यहाँ तक कि हमारे हर कार्य में एक निश्चितता थी—हमने सब्ज़ियाँ, मक्खन चिकन और केकड़े की ग्रेवी भरने में ध्यान रखा, जिसे उसने अच्छे से पकाया था। 

वह चाँद देखकर मुस्कराई। चाँद जिसका पश्चिमी किनारा कटा हुआ था, एप्पल लैपटॉप के लोगो की तरह, जिस पर वह पिछले कुछ दिनों से घर से अपने कार्यालय के काम करती थी। 

लता के मूड बदलते रहते थे; या शायद वह अस्वस्थ थी; वह अब कई दिनों तक नहीं बोलेगी। अपनी पूरी युवावस्था वह शब्दों से मोहित होती थी और संख्याओं से दुखी अनुभव करती थी। अब उसे याद आती है—बिना जाने कि उसे क्या याद आया—शब्दों की। 

सिड को बीमारी से नफ़रत थी और बीमार महिलाएँ तो और ज़्यादा दर्दनाक लगती थीं। अब लता बीमार थी। उसे माइग्रेन था, जिससे सिड को वास्तव में भयंकर चिढ़ थी। 

कुछ दिनों बाद चक्को की फ़ैलोशिप ख़त्म हो गई और मैं न्यू जर्सी वापस आ गई। शुरू-शुरू में, मैंने उसे सप्ताह में एक बार, फिर एक महीने में एक बार और फिर हर छह महीने में एक बार फोन करती थी और फिर कभी नहीं किया। मैंने उसके लंबे ई-मेल भी नहीं पढ़े, निसमें वह अपने अकेलेपन, नैतिक और भावनात्मक समर्थन की कमी और ऐसी ही सारी चीज़ों के बारे में लिखती थी। मैं चाहती तो मैं कम से कम उसके पत्रों को पढ़ सकती थी। मगर कंप्यूटर अध्ययन-कक्ष में रखा हुआ था, और मैं लिविंग रूम में बैठना पसंद करती थी, जहाँ मेरा होम थियेटर लगा हुआ था। मेरे पास मेल आईडी थी, मगर मैं मेल चेक करने में आलसी थी; चक्को मेरे मेल चेक करते थे और प्रिंट आउट निकालकर दे देते थे, यदि मैं किसी महत्त्वपूर्ण मेल के बारे में पूछती थी। इसके अलावा, मैं थोड़ा व्यस्त भी थी। न्यू जर्सी में हमारा नया घर बन रहा था, इंटीरियर डिज़ाइनर की वजह से मैं अधिकांश उन दिनों व्यस्त रहती थी। 

लता को मैंने भुला दिया था। गुमनामी में भेजकर, अपनी सुविधा के लिए। 

दो साल और बीत गए, शायद मेरा मेल बॉक्स अब तक लता के अपठित मेल से भर गया था। एक बार मेरी मुलाक़ात किसी शादी में लता की बहन से हुई तो उसकी चर्चा हुई। मुझे लता की निस्संगता थोड़ी बुरी लग रही थी। लेकिन उसकी बहन ने जवाब दिया, “देखो मृणालिनी, हर किसी के जीवन में समस्याएँ हैं। क्या मैंने एक अलग संस्कृति में शादी नहीं की और इतनी अच्छी तरह से एडजस्ट नहीं किया? क्या मैं अपने पति के साथ अपने कैरियर या किसी और चीज़ के लिए लड़ रही हूँ? और मुझे बताओ, एक पति कैसे ‘बलात्कार‘ कर सकता है? और अगर आपके पति से थोड़ी-बहुत बहस हो जाती है, तो क्या यह घरेलू हिंसा है? मेरा मतलब, गंभीरता से उसे सुलझा देना चाहिए। अगर उसकी अपने पति के साथ कोई समस्या थी, तो उसे हमारी मदद लेने की बजाय क़ानून की शरण में जाना चाहिए था। हम क्या कर सकते हैं? हम कैसे उसकी मदद कर सकते हैं? लता की आदत है कि अपनी चीज़ों को दुख में बदलने की। वह उस लड़के को क्यों नहीं छोड़ती है, सिड या जो कोई भी, अपने बलबूते पर? अब यह उस पर निर्भर करता है कि वह उसके साथ रहे या नहीं, भले ही, उसने अपने पूरे जीवन उसकी मदद की हो। कौन उसे भारत माता बनने के लिए कह रहा था? अब वह हमें ‘नैतिक समर्थन‘ के लिए मेल कर रही है, जिसे केवल वह ही बेहतर से समझती है।” 

शायद वह सही थी! शायद नहीं। वैसे भी, मेरे लिए यह सोचना सुविधाजनक था कि वह सही थी और लता ग़लत। हमेशा की तरह। 

कुछ दिनों बाद जयपुर की एक अस्पताल से मुझे फोन आया कि मैं भारत जाकर अपनी बीमार सहेली को देखूँ, जिसके मोबाइल में केवल एक नाम और पता सेव किया हुआ था, वह था मेरा। 

इस बार चक्को ने मुझे वहाँ जाने के ज़ोर देकर कहा। “कौन जानता है, तुम्हें उसे अब और देखने का मौक़ा नहीं मिले!” 

और लता ने ज़ोर देकर कहा कि उसे अस्पताल के निजी वार्ड से अपने घर वापस स्थानांतरित कर दिया जाए। 

“मैं अस्पताल में मरना नहीं चाहती . . . “

♦    ♦    ♦

उसकी पोशाक पहली बार ग़लत तरीक़े से पहनी हुई थी, झुमके बेमेल हो गए, उसका कोट अव्यवस्थित ढंग से उड़ रहा था; उसके कार्यालय बैग में चाबियों के छल्ले लटके हुए थे बिना चाबियों के, बिना उपयोग में लाई हुई विटामिन की गोलियाँ, आधी पढ़ी किताबें और अतिरिक्त चश्मे, सभी बिखरे हुए पड़े थे। मुझे पता चला, उस पर जुनून सवार था, नौकरानी के बाद, नौकरानी को अपने बाथरूम की अच्छी तरह सफ़ाई नहीं करने के लिए डाँट लगाती रहती थी; लेकिन अब फ़्लैट कई महीनों से ख़ाली पड़ा था। रोशनी मद्धिम थी, मगर असामान्य नहीं, क्योंकि जब वह अवसाद महसूस करती थी तो उसे उज्ज्वल रोशनी पसंद नहीं आती थी। 

लता निस्संग, नम्र, हल्की, रोमांटिक, प्यार से भरी लग रही थी, जैसे वह लाल रंग की मक्खी, लाल और मख़मली रानी हो। वह अपने सोफ़े पर शांत सो रही थी, अपने आरामदायक लाल रंग के ‘सिग्नेचर मिंक‘ कंबल में लिपटी हुई, जिसे वह पसंद करती थी, अपनी भूरी चप्पलों की तरह। शायद वह अपनी पसंदीदा सिने गायिका लता मंगेशकर के किसी पुराने गाने की धुन गुनगुना रही थीं। 

जब मैं पहुँची–थोड़ी देर रात हो गई थी—मुझे अच्छा नहीं लगा कि वह तब भी जाग रही थी। हो सकता है कि वह फिर से मुझे अपनी भावनाओं के चुंगल में फँसाने के मूड में थी! मैंने उसके सवालों के जवाब एक शब्द में दिए, या कभी-कभी तो बिल्कुल भी नहीं। मैंने बस उस पर एक सरसरी नज़र डाली, जिसकी कोई ज़रूरत नहीं थी। क्योंकि उसके चेहरे को कोई जाँच की आवश्यकता नहीं थी, प्रत्येक भावना जो उससे प्रकट हो रही थी, एकदम पारदर्शी। 
 

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