युद्ध : दो विचार

03-05-2012

युद्ध : दो विचार

डॉ. शैलजा सक्सेना

(1)
इतिहासों के गठ्ठर लेकर, इनसे बाँच रहे क्या भाई,
कितनी ही घटनाएँ हो लीं, बात एक पर समझ न आई,
वही ढाक के तीन पात हैं, बात-बात पर छिड़ी लड़ाई, 
अनगिन आहुति लेकर भी, आग लगी बुझने न पाई॥


(2) 
जितने आगे बढ़े, उतना बोझ बढ़ा हथियारों का,
जितने शीतल हुए, उतना ताप बढ़ा अँगारों का,
जितने मूक हुए, उतना शोध बढ़ा संचारों का,
मिले नहीं कोई अपवाद
जीवन बना एक प्रतिवाद॥

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