आँखें पगला गई हैं!
आत्माराम यादव ‘पीव’
मेरे दुख की इंतिहा है, दर्द से भर आई आँखें
आँखों में डूब न जाना, चलो तैरना सिखा दूँ।
भाग्य के जड़े सितारों को, देखती रही आँखें
आँखें पगला गई है, चलो इलाज करा दूँ॥
नदी में झाँककर, ख़ुद नदी बन गई आँखें
समुद्र में मिलना चाहे, चलो समुद्र से मिला दूँ।
ख़ूबसूरत स्वप्न देखना, सीख गई कँवारी आँखें
बंदिशें सभी हटाकर, चलो सपने साकार करा दूँ।
ब्रह्मांड पिघल न जाये, यह अजूबा देखती हैं आँखें
शिव पाँवों में बाँधे धरती, चलो नृत्य आज रुकवा दूँ॥
दुखों की धर्मशाला है तन, यह सच जान चुकी आँखें
‘पीव’ पखेरू के उड़ जाते ही, चिरनिंदा में सोएँगी आँखें॥
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