वतन का खाकर जवाँ हुए हैं

01-09-2020

वतन का खाकर जवाँ हुए हैं

निज़ाम-फतेहपुरी (अंक: 163, सितम्बर प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

ग़ज़ल- 121 22 121 22 121 22 121 22
 
अरकान- फ़ऊल फ़ालुन फ़ऊल फ़ालुन फ़ऊल फ़ालुन फ़ऊल फ़ालुन
 
वतन का खाकर जवाँ हुए हैं वतन की खातिर कटेगी गरदन
है कर्ज़ हम पर वतन का जितना अदा करेंगे लुटा के जाँ तन
 
हर एक क़तरा निचोड़ डालो  बदल दो रंगत वतन की यारो
जहाँ  गिरेगा   लहू   हमारा   वहीं   उगेगा   हसीन  गुलशन
 
सभी ने हम पर किए हैं हमले किसी ने खुलकर किसी ने मिलकर
खिला है जब-जब चमन हमारा हुए हैं इसके हज़ारों दुश्मन
 
दिखाएँ किसको ये ज़ख्म दिल के खड़े हैं क़ातिल बदल के चेहरे
जिन्होंने लूटा था  आबरू  को  वही  बने  हैं अज़ीज़-ए-दुल्हन
 
हमारा बाज़ू कटा जो  तन  से  वो  तेग़  लेकर हमी पे झपटा
समझ न आया ‘निज़ाम’ हम को  अजब हक़ीकत हुई है रौशन

– निज़ाम-फतेहपुरी

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