ग़ज़ल- 122 122 122 122
अरकान- फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
ग़ज़ल में नक़ल अच्छी आदत नहीं है
कहे ख़ुद की सब में ये ताक़त नहीं है
है आसान इतना नहीं शेर कहना
हुनर है क़लम का सियासत नहीं है
नहीं छपते दीवान ग़ज़लें चुराकर
अगर पास खुद की लियाक़त नहीं है
हिलाता है दरबार में दुम जो यारो
कहे सच ये उसमें सदाक़त नहीं है
जो डरता नहीं है सुख़नवर वही है
सही बात कहना बग़ावत नहीं है
अमन की है चाहत अमन चाहता हूँ
हमारी किसी से अदावत नहीं है
दबाया है झूठों ने सच इस क़दर से
कि सच भी ये सचमें सलामत नहीं है
दरिंदे भी अब रहनुमा बन रहे हैं
ये अच्छे दिनों की अलामत नहीं है
"निज़ाम" आज बिगड़ा है ऐसा जहाँ में
किसी की भी जाँ की हिफ़ाज़त नहीं है
– निज़ाम फतेहपुरी