ऐसे न काटो यार
अरुण कुमार प्रसाददरख़्तों के साये
हमारा घर, दर और दीवार।
इसे ऐसे न काटो यार।
हमें अतीत की कथाएँ
अपने बच्चों को कहनी हैं।
हमें भविष्य की
कहानियों के
तरीक़े गढ़ने हैं।
आकाश से बादलों का पता
पूछना है,
धरती से हमारा कल।
हम पहाड़ों से
पूछेंगे उसके ऊँचे होने का
रहस्य।
हमें भी होना है ऊँचा।
गहराइयों में जो अकूत
रत्न है सागर के
कितने क़त्ल कर किए हैं हासिल।
हमें पूछना है।
हमें भी होना है उतना गहरा।
मेरा अस्तित्व तो रहने दो।
इसे ऐसे न काटो यार।
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