युवा-दर्द के अपने सपने
डॉ. वेदित कुमार धीरजवो क्या जाने पीड़ा मेरी
मैं सहता मैं जानूँगा
इसी उमर में थकी-थकी सी
जो दिखती है आँखें मेरी
वो क्या जाने सपने इनके
मैंने देखे मैं जानूँगा
नज़रों से तो युवा-वर्ग
आशिक़ मिज़ाज ही माने सब
नालायक़ से दिखने वाले
कितने बोझ उठाये हैं
हृदय इनके शोले ही हैं
मैं जलता मैं जानूँगा
नाव हवा के संग बहे तो
नाविक की है क्या मर्यादा
जो लहरों से युद्ध लड़ा हो
वो संघर्ष पहचानेगा
वो क्या जाने पीड़ा मेरी
मैं सहता मैं जानूँगा
लड़ता ख़ातिर रोटी के
जो भूखा वो जानेगा
कंधों पर भार है कितना
जो ढोता वो जानेगा
चोट लगी हो दिल पर जिसके
मरहम वही पहचानेगा
वो क्या जाने पीड़ा मेरी
मैं सहता मैं जानूँगा
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- नज़्म
- कहानी
- कविता
-
- अनवरत - क्रांति
- अम्मा
- कविता तुम मेरी राधा हो
- कैंपस छोड़ आया हूँ
- गंउआ
- द्वितीय सेमेस्टर
- नया सफ़र
- परितोषक-त्याग
- पलाश के पुष्प
- प्रथम सेमेस्टर
- मजबूरी के हाइवे
- युवा-दर्द के अपने सपने
- राहत
- लुढ़कती बूँदें
- वेदिका
- वेदी
- शब्द जो ख़रीदे नहीं जाते
- शहादत गीत
- शिवोहम
- सत्य को स्वीकार हार
- सहायक! चलना होगा
- सालगिरह
- सेमर के लाल फूल
- विडियो
-
- ऑडियो
-