कविता तुम मेरी राधा हो
डॉ. वेदित कुमार धीरज
तुम तो हिये, प्रिये से प्यारी
उत तरसा, इत डूबा संग
हर पल, दिन-क्षण साथ बहा हो
मेंरे नयन की धारा संग
उबड़-खाबड़, पर्वत-पानी
निसदिन बही पिया के संग
तुम तो हिये . . .
क्या गोकुल, बसंत ऋतु, वर्षा
हर्षा मन जब जब राधा संग
या बिछड़न सों बिरहन मेंं जब
तब भी रही, हमारे संग
उत कान्हा की की वंशी थी या
इत ‘वेदित’ की कविता-छंद
तुम तो हिये . . .
कविते हिये, श्रेष्ठ हो प्रिय से
तुम हो हृदय, हृदय में वो है॥
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