सत्य को स्वीकार हार
डॉ. वेदित कुमार धीरज
सत्य को स्वीकार जय हो
यह तुम्हारी हार जय हो
साध्य और साधन तूणीर के
हो पवित्र अभिमान जय हो
सिर्फ़ तुमने ही नहीं,
दुनिया ने झेले है समर
अवां में जो तप के निकले,
वो सुभग को पावेंगे।
चंद्र की बनती कलाएँ
चंद्र के अगणित प्रयास
वो भी अपनी पूर्णिमा को
एक न एक दिन पाता है।
सत्य को स्वीकार जय हो
यह तुम्हारी हार जय हो
आस करके फँस रहा है
गुरु द्रोण के सानिध्य का
नहीं तेरे भाग्य मेंं,
अर्जुन-सा वो भावी नक्षत्र
स्वप्न से जागो धनुर्धर
कर्म तेरा ‘कर्ण’ सा
जाति तेरी, जन्म तेरा
जननी और सम्बंधी तेरा
नहीं हैं पहचान के
मोहताज ऐ प्रज्ञा-नक्षत्र
है तुम्हारा तेज ये,
अप्रतिम तुम्हारे कर्म से।
सत्य को स्वीकार जय हो
यह तुम्हारी हार जय हो
है नियति का खेल ये,
‘कर्ण’ को स्वीकार कर
सत्य को स्वीकार करके
हार अपनी मान कर
फिर नए आसा किरण से
एक नयी शुरूआत कर
सत्य को स्वीकार जय हो
यह तुम्हारी हार जय हो
साध्य और साधन तूणीर के
हो पवित्र अभिमान जय हो॥
संघर्ष तेरा जीत से हर बार
नहीं जायेगा हार
नित निरंतर लगे रहना,
बनाएगी इसे एक सुन्दर हार।
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