शहादत गीत
डॉ. वेदित कुमार धीरज
लेखनी आज रोई लिख के तेरी कथा
कैसे एक माँ का लाल भारत-माँ का हो गया
गिर गये शब्द सारे सिसक कर के तब
आबद्ध होने लगे बताने को जब
माँग पत्नी की कैसे बैरंग हुई
साया कैसे उठा एक बेटी से पिता का
बहन की राखी कैसे अधूरी रही
उन बेटियों के पुकारों को लिपिबद्ध किया
लेखनी रो पड़ी लिख के क्रन्दन कथा।
माँ जो सहती ना थी बेटे पर एक खरोंच भी
आज कैसे सह गयी इतने आघात को
देखती रह गयी क्षत-विक्षत लाश को
लेखनी आज रोई लिख के तेरी कथा
मातृ-ऋण से वो कैसे उर्तीण हुआ
कोई भी ऋण ना उसपे अब बाक़ी रहा
अर्थी को बाप ने कैसे कांधा दिया
छोटे भाई ने कैसे चिता सेज दी
इस कथानक जब लिपिबद्ध किया
लेखनी रो पड़ी लिख के तेरी कथा
जब लिखा फिर वो कैसे परिपूरित हुआ
गिर के वो इस धरा पे आसमानी हुआ
कैसे देवता हो गया आज मानव से वो
आज गर्वित हुआ लिख के तेरी कथा
लेखनी रो पड़ी लिख के तेरी कथा।
मैंने ग़ज़लें लिखी अफ़साने लिखे
प्रेमिकाएँ और उनके दीवाने लिखे
मैंने सावन लिखे, रात काली लिखी
प्रेम, चाँदनी विरह और जवानी लिखी
वाह-वाहें सुनी और तालियों की झंकार भी
आज शहादत गीत से सब कम ही रहा
हो गयी धन्य लेखनी लिख के तेरी कथा॥
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