द्वितीय सेमेस्टर

15-03-2023

द्वितीय सेमेस्टर

डॉ. वेदित कुमार धीरज (अंक: 225, मार्च द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

मैं विचलित सा हूँ पथ पर लेकिन मैंने कुछ पिया नहीं है
आज ख़ुमारी दिल पर छायी पर नाम तेरा मैंने लिया नहीं है। 
आज नींद से आँख खुली जब गली में तेरी पायल छनकी 
वर्षों से आँखें सूखी थीं आज है उनमें बरखा बरसी। 
  
नाम तेरा जब कोई पुकारे, कुछ ना कुछ तो आता है याद
सारे ज़ख़्म हरे हो जाते आँखों से होती बरसात
हृदय पटल अब भी सूना है ज़ख़्म पुराने फिर भी याद
नाम तेरा जब कोई पुकारे कुछ ना कुछ तो आता याद। 
 
ये विरहन के गीत हैं या फिर विरहन गीत हमारे हैं
जीवन की अब सांध्य काल में यही सबसे प्यारे हैं। 
जीवन में आस बची ना जब साथ छूटा है यारों का
प्रणय काल के बीच समय में हाथ छूटा है प्यारे का। 
 
मैं विचलित सा हूँ पथ पर लेकिन मैंने कुछ पिया नहीं है 
आज ख़ुमारी दिल पर छाई पर नाम तेरा मैंने लिया नहीं है। 

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